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साधु या साध्वी किसी महिला को बुला रहे हों तो बहुत आवाज देने पर भी वह न । सुने तो ऐसे नीच सम्बोधनों से सम्बोधित न करे- अरी होली (मूर्खे) ! अरी गोली! अरी वृषली (शूद्रे)! हे कुपक्षे (निन्द्यजातीये)!अरी घटदासी! ऐ कुत्ती! अरी चोरटी! हे गुप्तचरी!
अरी मायाविनी (धूर्ते), ऐसी ही तू है और ऐसे ही तेरे माता-पिता हैं! विचारशील साधुॐ साध्वी उक्त प्रकार की सावध, सक्रिय ... जीवोफ्घातिनी भाषा न बोलें। (528)
साधु या साध्वी किसी महिला को आमंत्रित कर रहे हों, बहुत बुलाने पर भी वह न सुने तो उसे इस प्रकार सम्बोधित करे- आयुष्मती! बहन (भगिनी)! भवती (अजी, आप
या मुखियाइन), भगवति! श्राविके! उपासिके! धार्मिके! धर्मप्रिये!- इस प्रकार की निरवद्य 卐 ... जीवोपधात-रहित भाषा विचारपूर्वक बोले। (529)
{966) चउण्हं खलु भासाणं परिसंखाय पनवं । दोण्हं तु विणयं सिक्खे, दो न भासेज सव्वसो॥ (1) जा य सच्चा अवत्तव्वा, सच्चामोसा य जा मुसा। जा य बुद्धेहिंऽणाइन्ना, न तं भासेज पण्णवं ॥ (2) असच्चमोसं सच्चं च अणवजमकक्कसं। समुप्पेहमसंदिद्धं गिरं भासेज पण्णवं ॥ (3) एयं च अट्ठमन्नं वा, जं तु नामेइ सासयं । सभासं असच्चमोसं पि तं पि धीरो विवजए॥ (4) वितहं पि तहामुत्तिं जं गिरं भासए नरो। तम्हा सो पुट्ठो पावेणं किं पुणो जो मुसं वए? ॥ (5)
__ (दशवै. 7/332-336) प्रज्ञावान् साधु (या साध्वी) (सत्या आदि) चारों ही भाषाओं को सभी प्रकार से जान कर, दो उत्तम भाषाओं का शुद्ध प्रयोग (विनय) करना सीखे और (शेष) दो (अधम) ॐ भाषाओं को सर्वथा न बोले। (1)
तथा जो भाषा सत्य है, किन्तु (सावद्य या हिंसाजनक होने से) अवक्तव्य (बोलने योग्य नहीं) है, जो सत्या-मृषा (मिश्र) है, तथा मृषा है एवं जो (सावद्य) असत्यामृषा E (व्यवहारभाषा) है, (किन्तु) तीर्थंकरदेवों (बुद्धों) के द्वारा अनाचीर्ण है, उसे भी प्रज्ञावान् 卐 साधु न बोले। (2) FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEE *
[जैन संस्कृति खण्ड/388
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