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SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEM 卐 उन्हें आच्छादित कर देता है-दबा देता है, परिताप देता है, चिपका देता है या पीड़ा पहुंचाता है
है। इसलिए जो आदान-भाण्ड(मात्र)निक्षेपणा समिति से युक्त है, वही निर्ग्रन्थ है, जो आदानभाण्ड(मात्र)निक्षेपणा समिति से रहित है, वह नहीं। यह चतुर्थ भावना है।
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1922). ___अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाणभोयणभोई।
केवली बूया- अणालोइयपाण-भोयणाभोई से णिग्गंथे पाणाणि वा भूताणि ॐ वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज वा जाव उद्दवेज वा। तम्हा आलोइयपाण-卐 卐 भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाण-भोयणभोई त्ति पंचमा भावणा।
__ (आचा. 2/15/ सू. 778) अहिंसा महाव्रत से सम्बन्धित पांचवीं भावना यह है
जो साधक 'आलोकित पान-भोजन-भोजी' होता है, वह निम्रन्थ होता है, अनालोकित-पान-भोजन-भोजी नहीं।
केवली भगवान् कहते हैं- जो बिना देखे-भाले ही आहार-पानी सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का हनन करता है, ....उन्हें पीड़ा पहुंचाता है। अत: जो देखभाल कर आहार-पानी का सेवन करता है, वही निर्ग्रन्थ है, बिना देखे-भाले आहार-पानी करने वाला नहीं। यह पंचम भावना' है।
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0 जीव-रक्षा में सावधानी: ईर्या समिति
(923) चक्षुर्गोचरजीवौधान् परिहत्य यतेर्यतः। ईर्यासमितिराद्या सा व्रतशुद्धकरी मता॥
(ह. पु. 2/122) नेत्रगोचर जीवों के समूह को बचा कर (अर्थात् उनकी रक्षा करते हुए) गमन करने 卐 वाले मुनि के प्रथम 'ईर्यासमिति' होती है। यह ईर्यासमिति व्रतों में शुद्धता उत्पन्न करने वाली मानी गयी है।
FFEREHESENTENEFIFFERHITENEF [जैन संकृति खण्ड/370 .