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555555555595555555555555555555555555 卐 तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि। पढमे भंते! महव्वए उवट्ठिओ मि सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं ॥
(दशवै. 4/42) ___ भंते! पहले महाव्रत में प्राणातिपात (जीवहिंसा) से विरमण (निवृत्ति) करना होता है है। हे भदन्त! मैं सर्व प्रकार के प्राणातिपात का प्रत्याख्यान (त्याग) करता हूं। सूक्ष्म या म बादर (स्थूल), त्रस या स्थावर, जो भी प्राणी हैं, उनके प्राणों का अतिपात (घात) न करना, 卐 दूसरों से प्राणातिपात न कराना, (और) प्राणातिपात करने वालों का अनुमोदन न करना,
(इस प्रकार की प्रतिज्ञा मैं) यावज्जीवन के लिए, तीन करण, तीन योग से करता हूं। अर्थात् मैं मन से, वचन से और काया से, (प्राणातिपात) स्वयं नहीं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा
और अन्य किसी करने वाले का अनुमोदन नहीं करूंगा। ॐ भंते! मैं उस (अतीत में किये हुए प्राणातिपात) से निवृत्त (विरत) होता हूं, 卐
(आत्मसाक्षी से उसकी) निन्दा करता हूं, (गुरुसाक्षी से) गर्दा करता हूं और (प्राणातिपात से या पापकारी कर्म से युक्त) आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूं। भंते! मैं प्रथम महाव्रत (पालन) के लिए उपस्थित (उद्यत) हुआ हूं। जिसमें सर्वप्रकार के प्राणातिपात से विरत होना 卐 होता है।
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{889) पढमं भंते! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं पाणातिवातं । से सुहमं वा बायरं वा म तसं वा थावरं वा णेव सयं पाणातिवातं करेजा जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा 卐 वयसा कायसा। तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि।
(आचा. 2/15 सू. 777) "भंते! मैं प्रथम महाव्रत में सम्पूर्ण प्राणातिपात (हिंसा) का प्रत्याख्यान- त्याग है 卐 करता हूं। मैं सूक्ष्म-स्थूल (बादर) और त्रस-स्थावर समस्त जीवों का न तो स्वयं प्राणातिपात है
(हिंसा) करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा और न प्राणांतिपात करने वालों का अनुमोदन
समर्थन करूंगा, इस प्रकार मैं यावज्जीवन तीन करण से एवं मन-वचन काया से- तीन योगों म से इस पाप से निवृत्त होता हूं। हे भगवान! मैं उस पूर्वकृत पाप (हिंसा) का प्रतिक्रमण है 卐 करता, (पीछे हटता) हूं, (आत्म-साक्षी से-) निन्दा करता हूं और (गुरु साक्षी से-) गर्दा है
करता हूं, अपनी आत्मा से पाप का व्युत्सर्ग (पृथक्करण) करता हूं।"
EFFEREYASEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
अहिंसा-विश्वकोश।3591