________________
FFEREFE REFEREFEREFEREFERE 卐 वह कषायों को कृश (अल्प) करके, अल्पाहारी बन कर परीषहों एवं दुर्वचनों को
सहन करता है, यदि भिक्षु ग्लानि को प्राप्त होता है, तो वह आहार के पास ही न जाये (आहार-सेवन न करे) । (18)
(संल्लेखना एवं अनशन-साधना में स्थित श्रमण) न तो जीने की आकांक्षा करे, न ॐ मरने की अभिलाषा करे। जीवन और मरण दोनों में भी आसक्त न हो। (19)
वह मध्यस्थ (सुख, दुःख में सम) और निर्जरा की भावना वाला भिक्षु समाधि का अनुपालन करे। वह (राग, द्वेष, कषाय आदि) आन्तरिक तथा (शरीर, उपकरण आदि) 卐 बाह्य पदार्थों का व्युत्सर्ग- त्याग करके शुद्ध अध्यात्म की एषणा (अन्वेषण) करे। (20) ॥ 卐 (संलेखना-काल में भिक्षु को) यदि अपनी आयु के क्षेम (जीवन-यापन)में जरा-सा
भी (किसी आतंक आदि का) उपक्रम (प्रारम्भ) जान पड़े तो उस संलेखना-काल के मध्य में ही पण्डित भिक्षु शीघ्र (भक्त-प्रत्याख्यान आदि से) पण्डितमरण को अपना ले। (21)
(संलेखना-साधक) ग्राम या वन में जाकर स्थण्डिलभूमि का प्रतिलेखन ) (अवलोकन) करे, उसे जीव-जन्तु रहित स्थान (के रूप में जांच-परख के साथ) जान कर - मुनि (वहीं) घास बिछा ले। (22)
वह वहीं (उस घास के बिछौने पर) निराहार हो (त्रिविध या चतुर्विध आहार का म प्रत्याख्यान) कर (शान्तभाव से) लेट जाये। उस समय परीषहों और उपसर्गों से आक्रान्त ' ॐ होने पर (समभावपूर्वक) सहन करे। मनुष्यकृत (अनुकूल-प्रतिकूल) उपसर्गों से आक्रान्त होने पर भी मर्यादा का उल्लंघन न करे। (23)
जो रेंगने वाले (चींटी आदि) प्राणी हैं, या जो (गिद्ध आदि) ऊपर आकाश में 卐 उड़ने वाले हैं, या (सर्प आदि) जो नीचे बिलों में रहते हैं, वे कदाचित् अनशनधारी मुनि के ' ॐ शरीर का मांस नोंचें और रक्त पीएं तो मुनि न तो उन्हें मारे और न ही रजोहरणादि से प्रमार्जन (निवारण) करे। (24)
(वह मुनि ऐसा चिन्तन करे) ये प्राणी मेरे शरीर का विघात (नाश) कर रहे हैं, 卐 (मेरे ज्ञानादि आत्म-गुणों का नहीं, ऐसा विचार कर उन्हें न हटाए) और न ही उस स्थान से
उठ कर अन्यत्र जाए। आस्रवों (हिंसादि) से पृथक् हो जाने के कारण (अमृत से सिंचित की तरह) तृप्ति अनुभव करता हुआ (उन उपसर्गों को) सहन करे। (25)
उस सल्लेखना-साधक की (शरीर उपकरणादि बाह्य और रागादि अन्तरंग) गांठे म (ग्रन्थियां) खुल जाती हैं, (तब मात्र आत्मचिन्तन में संलग्न वह मुनि) आयुष्य (समाधिमरण)卐 卐 के काल का पारगामी हो जाता है। (26)
FFFFFFFFFFFFFERE [जैन संस्कृति खण्ड/352
卐.
F