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{828) तं णो करिस्सामि समुट्ठाए मत्ता मतिमं अभयं विदित्ता तं जे णो करए जी एसोवरते, एत्थोवरए, एस अणगारे त्ति पवुच्चति।
(आचा. 1/1/5/सू. 40) ___ (अहिंसा में आस्था रखने वाला यह संकल्प करे)- मैं संयम अंगीकार करके वह 卐 हिंसा नहीं करूंगा। बुद्धिमान् संयम में स्थिर होकर मनन करे और 'प्रत्येक जीव अभय चाहता है' यह जान कर (हिंसा न करे) जो हिंसा नहीं करता, वही व्रती है। इस अर्हत्शासन में जो व्रती है, वही 'अनगार' कहलाता है।
{829) तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं एतेहिं कजेहि दंडं समारंभेजा, णेव अण्णं एतेहिं कजेहिं दंडं समारंभावेजा, णेवण्णे एतेहिं कजेहि दंडं समारंभंते समणुजाणेजा। एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते जहेत्थ कुसले णोवलिंपेज्जासि त्ति बेमि।
(आचा. 1/2/2 सू. 74) यह जान कर मेधावी पुरुष स्वयं हिंसा न करे, दूसरों से हिंसा न करवाए तथा हिंसा म करने वाले का अनुमोदन भी न करे।
यह (लोक-विजय का/संसार से पार पहुंचने का) मार्ग आर्य पुरुषों ने-तीर्थंकरों ने बताया है। कुशल पुरुष इन विषयों में लिप्त न हों-ऐसा मैं कहता हूं।
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{8301 तणरु क्खहरिदछे दणतयपत्तपवालकंदमूलाई । फलपुप्फबीयघादं ण करेंति मुणी ण कारेंति ॥
(मूला. 9/803) तृण, वृक्ष, एवं हरित वनस्पति का छेदन तथा छाल, पत्ते, कोंपल, कन्द-मूल तथा फल, पुष्प और बीज -इन (वनस्पतिकायिक जीवों) का घात मुनि न स्वयं करते हैं और न कराते हैं।
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अहिंसा-विश्वकोश।337