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ज्ञानी होने का यही सार है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता । समता ही अहिंसा है, इतना ही उसे जानना है ।
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O अहिंसा / समता/क्षमा से समन्चितः साधु-चर्या
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(सगता = अहिंसा)
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(840)
खुणाणि सारं जं ण हिंसइ कंचणं । अहिंसा समयं चेव एयावंतं वियाणिया ॥
● अहिंसक साधुः आत्मवत् दृष्टि से सम्पन्न
(सू.कृ. 1/1/4/85;1/11/10 )
(841)
णिक्खित्तसत्थदंडा समणा सम सव्वपाणभूदेसु ।
(मूला. 9/805 )
श्रमण शस्त्र और दण्ड (हिंसा) से रहित होते हैं, सभी प्राणियों और भूतों के प्रति समभावी होते हैं ।
(842)
संधिं लोगस्स जाणित्ता आयाओ बहिया पास। तम्हा ण हंता ण विघातए ।
पहुंचाए) अथवा प्रमाद न करे ।
( आचा. 1/3/3 सू. 122 )
साधक (धर्मानुष्ठान की अपूर्व ) सन्धि-वेला समझ कर (प्राणि - लोक को दुःख न
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अपनी आत्मा के समान बाह्य - जगत् (दूसरी आत्माओं) को देख ! (सभी जीवों
को मेरे समान ही सुख प्रिय है, दुःख अप्रिय है) - यह समझ कर मुनि जीवों का हनन न
स्वयं करे और न दूसरों से कराए ।
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卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐驅 編編編卐卐卐卐卐卐卐卐卐 अहिंसा - विश्वकोश | 341 ]