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(हिंसक कार्यः जुआ खेलना)
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{756) द्यूते हिंसानृतस्तेयलोभमायामये सजन्। क्व स्वं क्षिपति नानर्थे वेश्याखेटान्यदारवत् ॥
(सा. ध. 2/17) वेश्यागमन, शिकार खेलना और परस्त्रीगमन में आसक्त मनुष्य की तरह हिंसा, झूठ, चोरी, लोभ, और मायाचार से भरे जुए में आसक्त मनुष्य अपने को, अपने सम्बन्धियों को किस अनर्थ में नहीं डालता? अर्थात् सभी बुराइयों में डालता है।
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सर्वानर्थप्रथमं मथनं शौचस्य सद्म मायायाः। दूरात्परिहरणीयं चौर्यासत्यास्पदं द्यूतम् ।।
(पुरु. 4/110/146) सप्त व्यसनों में पहला-सब अनर्थों में मुख्य, सन्तोष का नाश करने वाला, मायाचार का घर, और चोरी व असत्य का स्थान- जुआ खेलना है, उसे दूर ही से त्याग देना चाहिये।
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(हिंसा-निवृत्ति रूप अनर्थदण्ड व्रत का लाभ)
{758} एवंविधमपरमपि ज्ञात्वा मुञ्चत्यनर्थदण्डं यः। तस्यानिशमनवद्यं विजयमहिंसाव्रतं लभते ॥
___ (पुरु. 4/111/147) जो मनुष्य इस प्रकार के तथा अन्य भी अनर्थदण्डों को जान कर छोड़ता है, उसका अहिंसाव्रत निरन्तर निर्दोष रूप से विजय (पूर्णता/सफलता) को प्राप्त करता है।
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GEE [जैन संस्कृति खण्ड/816