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{750) परशुकृपाणखनित्र-ज्वलनायुधशृंखलादीनाम्। वधहेतूनां दानं, हिंसादानं ब्रुवन्ति बुधाः॥
(रत्नक. श्रा. 77) हिंसा के कारणभूत फरसा, तलवार, कुदारी, फावड़ा, अग्नि, छुरी, कटार आदि हथियार, सींगी, विष और शांकल आदि वस्तुएं दूसरों को देना 'हिंसादान' नामक अनर्थदण्ड कहलाता है।
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{751) हिंसादानं विषास्त्रादिहिंसाङ्गस्पर्शनं त्यजेत् । पाकाद्यर्थं च नाग्न्यादि दाक्षिण्याविषयेऽर्पयेत् ॥
(सा. ध. 5/8) अनर्थदण्ड व्रत का पालक श्रावक प्राणिवध के साधन विष, अस्त्र आदि के देने रूप हिंसादान नामक अनर्थदण्ड को छोड़े। इसके अतिरिक्त, पारस्परिक व्यवहार के सिवाय किसी दूसरे को पकाने आदि के लिए अग्नि वगैरह न देवे।
(हिंसा-समर्थक दूषित शारों/कथाओं/दृश्यों के सुनने-देखने का त्याग)
(752} रागादिवर्द्धनानां दुष्टकथानामबोधबहुलानाम् । न कदाचन कुर्वीत श्रवणार्जनशिक्षणादीनि ॥
(पुरु. 4/109/145) मोह, राग-द्वेष आदि (हिंसात्मक वृत्ति) को बढ़ाने वाली तथा बहुत अंशों में ॐ अज्ञान से भरी हुई दुष्ट कथाओं का सुनना, धारण करना, सीखना आदि कभी भी नहीं है
करना चाहिये।
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