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'' ''' ' ma 1742) वृषभान् दमय, क्षेत्रं कृष षण्ढय वाजिनः। दाक्षिण्याविषये पापोपदेशोऽयं न कल्पते ॥
(है. योग. 3/76) बछड़ों को वश में करो, खेत जोतो, घोड़ों को खस्सी करो, इत्यादि पाप-जनक उपदेश दाक्षिण्य (लोकव्यवहार हेतु अपने पुत्रादि को समझाने-सिखाने) के सिवाय दूसरों को पापोपदेश देना श्रावक के लिए कल्पनीय (विहित) नहीं है।
(हिंराक प्रमादचर्या त्याज्य)
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{743} भूखननवृक्षमोट्टनशाड्वलदलनाम्बुसेचनादीनि। निष्कारणं न कुर्याद्दलफलकुसुमोच्चयानपि च॥
___ (पुरु. 4/107/143) ___ पृथ्वी खोदना, वृक्ष उखाड़ना, अतिशय घास वाली भूमि रौंदना, पानी सींचना 卐 इत्यादि, और पत्ते, फल व फूल आदि तोड़ना इत्यादि (हिंसा-पूर्ण कार्य) भी विना प्रयोजन
नहीं करने चाहिएं।
{744) विहलो जो वावारो पुढवी-तोयाण अग्गि-वाऊणं। तह वि वणप्फदि-छेदो अणत्थ-दंडो हवे तिदिओ॥
(स्वा. कार्ति. 12/346) पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन- इनसे सम्बन्धित निष्प्रयोजन प्रवृत्ति (जैसे, भूमि खोदना, पत्थर कूटना, तोड़ना, जल का अनियन्त्रित दुरुपयोग, आग जलाना, जंगल जलाना आदि卐 आदि) करना, तथा निष्प्रयोजन वनस्पति को काटना- यह तीसरा अनर्थदण्ड है।
(745)
जीवघ्रजीवान् स्वीकुर्यान्मार्जारशुनकादिकान् ॥
(सा. ध. 5/11) प्राणियों का घात करने वाले कुत्ता-बिल्ली आदि जन्तुओं को भी नहीं पाले।
[जैन संस्कृति खण्ड/812