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जो उपकार न होकर जो प्रवृत्ति केवल पाप का कारण है वह अनर्थदण्ड है। इससे विरत होना अनर्थदण्डविरति है। अनर्थदण्ड पांच प्रकार का है-अपध्यान, पापोपदेश,
प्रमादाचरित, हिंसाप्रदान और अशुभश्रुति। दूसरों का जय, पराजय, मारना, बांधना, अंगों का है 卐 छेदन और धन का अपहरण आदि कैसे किया जाए- इस प्रकार मन से विचार करना है
अपध्यान नाम का अनर्थदण्ड है। तिर्यंचों को क्लेश पहुंचाने वाले, वाणिज्य का प्रसार करने म वाले और प्राणियों की हिंसा के कारणभूत आरम्भ आदि के विषय में पापबहुल वचन
बोलना पापोपदेश नाम का अनर्थदण्ड है। बिना प्रयोजन के वृक्षादि का छेदन, भूमि का
कूटना, पानी का सींचना आदि पाप कार्य प्रमादाचरित नाम का अनर्थदण्ड है। विष, कांटा, # शस्त्र, अग्नि, रस्सी, चाबुक और लकड़ी आदि हिंसा के उपकरणों का प्रदान करना 卐 हिंसाप्रदान नाम का अनर्थदण्ड है। हिंसा और राग आदि को बढ़ाने वाली दुष्ट कथाओं का
सुनना और उनकी शिक्षा देना अशुभश्रुति नाम का अनर्थदण्ड है।
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(हिंसात्मक अपध्यान रूप अनर्थदण्ड)
{737) वैरिघातो नरेन्द्रत्वं पुरघाताऽग्निदीपने। खेचरत्वाद्यपध्यानं मुहूर्तात्परतस्त्यजेत् ॥
(है. योग. 3/75) ॥ शत्रु का नाश करना, राजा आदि होने के लिए अत्युत्कट राग-द्वेष-मय प्रवृत्ति, नगर ' में तोड़फोड़ या दंगे करना, नाश करना, आग लगाना अथवा अन्तरिक्ष यात्रा-अज्ञात अन्तरिक्ष के ॐ में गमन आदि के चिन्तनरूप कुध्यान में डूबे रहना, अपध्यान है। ऐसा दुर्ध्यान आ भी जाय तो मुहूर्त के बाद तो उसे अवश्य ही छोड़ दे। ..
[दुश्मन की हत्या करने, नगर को उजाड़ने या नगर में तोड़फोड़, दंगे, हत्याकांड आदि करने, आग लगाने : ॐ या किसी वस्तु को फूंक देने का विचार करना रौद्रध्यानरूप अपध्यान है। चक्रवर्ती बनूं या आकाशगामिनी विद्या का 卐 अधिकारी बन जाऊं, ऋद्धिसम्पत्र देव बन जाऊं अथवा देवांगनाओं या विद्याधारियों के साथ सुखभोग करने वाला या 卐 उनका स्वामी बनूं। इस प्रकार का दुश्चिन्तन 'आर्तध्यान' है। इस प्रकार के दुश्चिन्तनों को मुहूर्त के बाद तो अवश्य 卐 छोड़ देना चाहिए।
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卐 [जैन संस्कृति खण्ड/810