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पीड़ा पापोपदेशाद्यैर्दैहाद्यर्थाद्विनाऽङ्गिनाम्। अनर्थदण्डस्तत्त्यागोऽनर्थदण्डव्रतं मतम् ।।
(सा. ध. 5/6) ___ अपने तथा अपने सम्बन्धियों के किसी मन-वचन-काय सम्बन्धी प्रयोजन के बिना म पापोपदेश, हिंसादान, दुःश्रुति, अपध्यान और प्रमादचर्या के द्वारा प्राणियों को पीड़ा देना 卐 अनर्थदण्ड है, और उसका त्याग अनर्थदण्ड व्रत गया माना है।
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पापोपदेश आदिष्टो वचनं पापसंयुतम्। यद्वणिग्वधकारम्भपूर्वं सावद्यकर्मसु॥ अपध्यानं जयः स्वस्य यः परस्य पराजयः। वधबन्धार्थहरणं कथं स्यादिति चिन्तनम्॥ वृक्षादिच्छेदनं भूमिकुट्टनं जलसेचनम्। इत्याद्यनर्थकं कर्म प्रमादाचरितं तथा ॥
__(ह. पु. 58/148-150) वणिक तथा वधक आदि के सावध कार्यों में आरम्भ कराने वाले जो पापपूर्ण वचन म हैं वह पापोपदेश अनर्थदण्ड है। अपनी जय, दूसरे की पराजय तथा वध, बन्धन एवं धन का ॐ हरण आदि किस प्रकार हो- ऐसा चिन्तन करना- अपध्यान है। वृक्षादिक का छेदना,
पृथिवी का कूटना, पानी का सींचना आदि अनर्थक कार्य करना प्रमादाचरित नाम का अनर्थदण्ड है।
{736) असत्युपकारे पापादानहेतुरनर्थदण्डः। ततो विरतिरनर्थदण्डविरतिः।अनर्थदण्डः 卐 पञ्चविध:- अपध्यानं पापोपदेशः प्रमादाचरितं हिंसाप्रदानं अशुभश्रुतिरिति। तत्र ॐ परे षां जयपराजयवधबन्धनाङ्गच्छे दपरस्वहरणादि कथं स्यादिति मनसा
चिन्तनमपध्यानम्। तिर्यक्क्लेशवाणिज्यप्राणिवधकारम्भादिषु पापसंयुक्तं वचनं पापापदेशः। प्रयोजनमन्तरेण वृक्षादिच्छे दनभूमिकुट्ट नसलिलसेचनाद्यवद्यकर्म 卐 प्रमादाचरितम् । विषकण्ट कशस्त्रागिरजु-कशादण्डादिहिं सोपकरणप्रदानं ॥ 卐 हिंसारागादिप्रवर्धनदुष्ट कथाश्रवणशिक्षणव्यापृतिरशुभश्रुतिः।
(सर्वा. 7/21/703) को
अहिंसा-विश्वकोश। 3091