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वधवन्धछेदादेद्वेषाद्रागाच्च परकलत्रादेः। आध्यानमपध्यानं, शासति जिनशासने विशदाः॥
(रत्नक. श्रा. 78) द्वेष और राग से अन्य की स्त्री और धन आदि के नाश होने, अन्य के बंध जाने, कट जाने और हार जाने आदि से सम्बन्धित चिन्तन करने को 'अपध्यान' नामक अनर्थदण्ड कहते हैं।
(हिंसात्गक पापोपदेश त्याज्य)
{739) तिर्यक्लेशवणिज्या-हिंसारम्भप्रलम्भनादीनाम्। प्रसवः कथाप्रसङ्गः, स्मर्तव्यः पाप उपदेशः॥
(रत्नक. श्रा. 76) गाय-भैंस आदि पशुओं का व्यापार, जीव-पीडाकारक व्यापार, शिकार करने आदि से सम्बन्धित हिंसा, जीवहिंसा की सम्भावना वाले कार्य, छलकपट के कार्य -इनका उपदेश करना, ऐसी कथा-वार्ता करना यह 'पापोपदेश' नामक अनर्थदण्ड कहलाता है।
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क्षितिसलिलदहनपवनारम्भं विफलं वनस्पतिच्छेदम्। सरणं सारणमपि च, प्रमादचऱ्या प्रभाषन्ते ॥
___ (रत्नक. श्रा. 80) निष्प्रयोजन जमीन खोदने, जल बहाने, अग्नि जलाने, हवा करने, वनस्पति तोड़ने, और निष्प्रयोजन घूमने-घुमाने को 'प्रमादचर्या' नामक अनर्थदण्ड कहते हैं।
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विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविनां पुंसाम्। पापोपदेशदानं कदाचिदपि नैव वक्तव्यम् ॥
___ (पुरु. 4/106/142) विद्या, व्यापार, लेखनकला, खेती, नौकरी, और कारीगरी से निर्वाह करने वाले :F पुरुषों को पाप (हिंसा आदि) का उपदेश देने वाले वचन किसी भी समय अर्थात् कभी भी 卐 नहीं बोलने चाहिये। FFEEFFFFFFFERENESS
अहिंसा-विश्वकोश/3111