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चनचननाम:
{801)
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अन्नं पानं खाद्यं लेह्यं नाश्राति यो विभावर्याम्। स च रात्रिभुक्तिविरतः, सत्त्वेष्वनुकम्पमानमनाः॥
(रत्नक. श्रा. 142) जो व्यक्ति जीवदया के विचार से रात्रि में दाल-भात वगैरह अन्न, दूध आदि पान, जपेड़ा, बरफी आदि खाद्य, और रबड़ी, चटनी, आमरस आदि लेह्य- इन चार प्रकार के
आहारों को नहीं खाता है, वह रात्रिभोजनत्याग प्रतिमा का धारी है।
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{802) मलबीजं मलयोनिं, गलन्मलं पूतिगन्धि बीभत्सम्। पश्यन्नङ्ग मनङ्गाद् विरमति यो ब्रह्मचारी सः॥
(रत्नक. श्रा. 143) जो व्रती शरीर को अपवित्रता का कारण, नवद्वार से मल प्रवाहक (बहाने वाला) म तथा दुर्गन्ध-पूर्ण और ग्लानि-योग्य जान कर कामसेवन का सर्वथा त्याग कर देता है, वह ॥ ॐ ब्रह्मचर्य प्रतिमा का धारक है।
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{803) अनुमतिरारम्भे वा, परिग्रहे वैहिकेषु कर्मसु वा। नास्ति खलु यस्य समधीरनुमतिविरतः स मन्तव्यः॥
(रत्नक. श्रा. 146) जो किसी भी आरम्भ, धन आदि परिग्रह, विवाह आदिक इस लोक सम्बन्धी कार्य- इन सभी में अनुमति नहीं देता, वह ममता और रागद्वेष से रहित व्यक्ति 'अनुमतित्याग प्रतिमावान्' कहलाता है।
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{804)
सेवाकृषिवाणिज्य-प्रमुखादारम्भतो व्युपारमति। प्राणातिपातहेतोः योऽसावारम्भ-विनिवृत्तः॥
(रत्नक. श्रा. 144) जो व्यक्ति हिंसा के कारणभूत कामों- नौकरी, खेती, व्यापार आदिक आरम्भ का 卐 卐 त्याग कर देता है, वह 'आरम्भत्याग-प्रतिमावान्' कहलाता है।
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अहिंसा-विश्वकोश/329]