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तस्स य णामाणि इमाणि गोण्णाणि होंति तीसं, तं जहा - १ पाणवहं २ उम्मूलणा
卐 सरीराओ ३ अवीसंभो ४ हिंसविहिंसा, तहा ५ अकिच्चं च ६ घायणा य ७ मारणा य ८ वहणा ९ उद्दवणा १० तिवायणा य ११ आरंभसमारंभो १२ आउयक्कम्मस्सुवद्दवो 卐 भेयणिट्ठवणगालणा य संवट्टगसंखेवो १३ मच्चू १४ असंजमो १५ कडगमद्दणं १६ क वोरमणं १७ परभवसंकामकारओ १८ दुग्गइप्पवाओ १९ पावकोवो य २० पावलोभो २१ छविच्छेओ २२ जीवियंतकरणो २३ भयंकरो २४ अणकरो २५ वज्जो २६
परियावणअण्हओ २७ विणासो २८ णिज्जवणा २९ लुंपणा ३० गुणाणं विराहणत्ति
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देसगाई ॥
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विय तस्स एवमाईणि णामधिज्जाणि होंति तीसं, पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल-फ
प्राणवधरूप हिंसा के विविध आयामों के प्रतिपादक गुणवाचक तीस नाम हैं। जैसे
(1) प्राणवध ( 2 ) शरीर से ( प्राणों का) उन्मूलन (3) अविश्वास (4) हिंस्य विहिंसा
(5) अकृत्य (6) घातना (7) मारण ( 8 ) वधना (9) उपद्रव (10) अतिपातना (11)
आरम्भ-समारंभ (12) आयुकर्म का उपद्रव, भेद, निष्ठापन, गालना, संवर्तक और संक्षेप
(22) जीवित - अंतकरण (23) भयंकर (24) ऋणकर (25) वज्र (26) परितापन
(प्रश्न. 1/1/सू. 3)
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(13) मृत्यु (14) असंयम (15) कटक ( सैन्य ) - मर्दन ( 16 ) व्युपरमण ( 17 ) परभवसंक्रामणकारक (18) दुर्गतिप्रपात (19) पापकोप (20) पापलोभ (21) छविच्छेद
आस्रव ( 27 ) विनाश (28) निर्यापना (29) लुंपना (30) गुणों की विराधना । प्राणवध के
कलुषित फल के निर्देशक ये तीस नाम हैं।
1. पाणवह (प्राणवध ) - जिस जीव को जितने प्राण प्राप्त हैं, उनका हनन करना ।
2. उम्मूलणा सरीराओ (उन्मूलना शरीरात्) - जीव को शरीर से पृथक् कर देना
प्राणी के प्राणों का उन्मूलन करना ।
होता। वह अविश्वासजनक है, अतः अविश्रम्भ है।
3. अवीसंभ (अविश्रम्भ) - अविश्वास, हिंसाकारक पर किसी को विश्वास नहीं
हनन होता है।
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卐 प्राणी-वध अकृत्य- कुकृत्य है ।
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4. हिंसविहिंसा (हिंस्यविहिंसा) - जिसकी हिंसा की जाती है उसके प्राणों का
6. घायणा (घातना) - प्राणों का घात करना ।
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5. अकिच्चं (अकृत्यम्) - सत्पुरुषों द्वारा करने योग्य कार्य न होने के कारण
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[ जैन संस्कृति खण्ड /86
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