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(268) (तसपाणे थावरे य हिंसंति...) इओ आउक्खए चुया असुभकम्मबहुला उववजंति णरएसु हुलियं महालएसु वयरामय-कुड्ड-रुद्द-णिस्संधि-दार-विरहियहिम्मद्दव-भूमितल-खरामरिसविसम-णिरय-घरचारएसु महोसिण-सया-पतत्त卐 दुग्गंध-विस्स-उव्वेयजणगेसु बीभच्छदरिसणिज्जेसु णिच्वं हिमपडलसीयलेसु
कालोभासेसु य भीम-गंभीर-लोमह रिसणेसु णिरभिरामेसु णिप्पडियार
वाहिरोगजरापीलिएसु अईवणिच्चंधयार-तिमिस्सेसु पइभएसु ववगय-गह-चंद-सूरमणक्खत्तजोइसेसु मेय-वसा-मंसपडल-पोच्चड-पूय-रुहि-रुक्किण्ण-विलीण-卐
चिक्कण-रसिया वावण्णकुहियचिक्खल्लकद्दमेसु कुकू-लाणल-पलित्तजालमुम्मुरम असिक्खुर- करवत्तधारासु णिसिय-विच्छुयडंक-णिवायोवम्म-फरिसअइदुस्सहेसु य, ॐ अत्ताणा असरणा कडुयदुक्ख- परितावणेसु अणुबद्ध-णिरंतर-वेयणेसु जमपुरिसॐ संकुलेसु।
(प्रश्न. 1/1/सू.23) (त्रस व स्थावर प्राणियों के हिंसक पापी जन) यहां-मनुष्य भव से आयु की समाप्ति होने पर, मृत्यु को प्राप्त होकर अशुभ कर्मों की बहुलता के कारण शीघ्र ही-सीधे ही-नरकों ज में उत्पन्न होते हैं। ॐ वे नरक बहुत विशाल- विस्तृत हैं। उनकी भित्तियां वज्रमय हैं। उन भित्तियों में है
कोई सन्धि-छिद्र नहीं है, बाहर निकलने के लिए कोई द्वार नहीं है। वहां की भूमि
मृदुतारहित-कठोर है। वह नरक रूपी विषम कारागार है। वहां नारकावास अत्यन्त उष्ण एवं 卐 तप्त रहते हैं। वे जीव वहां दुर्गन्ध-सडांध के कारण सदैव उद्विग्न-घबराए रहते हैं। वहां ॥ * का दृश्य ही अत्यन्त बीभत्स है- वे देखने में भयंकर प्रतीत होते हैं। वहां (किन्हीं स्थानों में है।
जहां शीत की प्रधानता है) हिम-पटल के सदृश शीतलता (बनी रहती) है। वे नरक भयंकर 卐 हैं, गंभीर एवं रोमांच खड़े कर देने वाले हैं। अरमणीय-घृणास्पद हैं। वे जिसका प्रतीकार न ॥
हो सके अर्थात् असाध्य कुष्ठ आदि व्याधियों, रोगों एवं जरा से पीड़ा पहुंचाने वाले हैं। वहां -
सदैव अन्धकार रहने के कारण प्रत्येक वस्तु अतीव भयानक लगती है। ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, 卐 नक्षत्र आदि की ज्योति- प्रकाश का वहां अभाव है। मेद, वसा- चर्बी, मांस के ढेर होने से है
वह स्थान अत्यन्त घृणास्पद है। पीव और रुधिर के बहने से वहां की भूमि गीली और
चिकनी रहती है और कीचड़-सी बनी रहती है। (जहां उष्णता की प्रधानता है) वहां का REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE*
अहिंसा-विश्वकोश||21]
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