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M A 15101 इमेहिं विविहेहिं कारणेहिं, किं ते? चम्म-वसा-मंस-मेय-सोणिय-जग ) ऑफिप्फिस-मथु-लुंग-हिययंत-पित्त-फोफस-दंतट्ठा अट्ठिमिंज-णह-णयण-कण्णहारुणि-णक्क-धमणि-सिंग-दाढि-पिच्छ-विस-विसाण-बालहेडं।
हिंसंति य भमर-महुकरिगणे रसेसु गिद्धा तहेव तेइंदिए सरीरोवगरणट्ठयाए 卐 किवणे बेइंदिए बहवे वत्थोहर-परिमंडणट्ठा।
(प्रश्न. 1/1/सू.11) इन कारणों (उद्देश्यों) से लोग प्राणियों की हिंसा करते हैं। वे कारण क्या हैं? 卐 (उत्तर-) चमड़ा, चर्बी, मांस, मेद, रक्त, यकृत्, फेफड़ा, भेजा, हृदय, आंत, पित्ताशय, 卐
फोफस (शरीर का एक विशिष्ट अवयव), दांत, अस्थि-हड्डी, मज्जा, नाखून, नेत्र, कान,
स्नायु, नाक, धमनी, सींग, दाढ़, पिच्छ, विष, विषाण- हाथी-दांत तथा शूकरदंत, और म बालों के लिए (हिंसक प्राणी जीवों की हिंसा करते हैं)।
रसासक्त मनुष्य मधु के लिए भ्रमर- मधुमक्खियों का हनन करते हैं, शारीरिक सुख या दुःखनिवारण करने के लिए खटमल आदि त्रीन्द्रियों का वध करते हैं, (रेशमी) वस्त्रों के लिए अनेक द्वीन्द्रिय कीड़ों आदि का घात करते हैं।
{511) अण्णेहि य एवमाइएहिं बहूहिं कारणसएहिं अबुहा इह हिंसति तसे पाणे। 卐 इमे य- एगिदिए बहवे वराए तसे य अण्णे तयस्सिए चेव तणुसरीरे समारंभंति। 卐 अत्ताणे, असरणे, अणाहे , अबंधवे, कम्मणिगड-बद्ध, अकुसलपरिणाम
मंदबुद्धिजणदुव्विजाणए, पुढविमए, पुढविसंसिए, जलमए, जलगए, अणलाणिलतण-वणस्सइगणणिस्सिए य तम्मयतज्जिए चेव तयाहारे तप्परिणय-वण्ण-गंध
रस-फास-बोंदिरूवे अचक्खुसे चक्खुसे य तसकाइए असंखे । थावरकाए य सुहुम卐बायर-पत्तेय-सरीरणामसाहारणे अणंते हणंति अविजाणओ य परिजाणओ य जीवे इमेहिं विविहे हिं कारणेहिं। '
(प्रश्न. 1/1/सू.12) बुद्धिहीन अज्ञानी पापी लोग ही पूर्वोक्त तथा अन्य अनेकानेक प्रयोजनों से त्रसचलते-फिरते, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय -जीवों का समारंभ करते हैं। ये प्राणी त्राणरहित हैं-उनके पास अपनी रक्षा के साधन नहीं हैं, अशरण हैं- उन्हें कोई शरण
आश्रय देने वाला नहीं है, वे अनाथ हैं, बन्धु-बान्धवों से रहित हैं-सहायकविहीन हैं और ॥ EduREFEREFERESEREEEEEEEEEEEEEEER
[जैन संस्कृति खण्ड/222
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