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(726) सारिकाशुकमार्जार-श्व-कुर्कुट-कलापिनाम्। पोषो दास्याश्च वित्तार्थमसतीपोषणं विदुः॥
. (है. योग. 3/112) असती अर्थात दुष्टाचार वाले, तोता, मैना, बिल्ली, कुत्ता, मुर्गा, मोर आदि तिर्यंच पशुॐ पक्षियों का पोषण (पालन) करना, तथा धन-प्राप्ति के लिए व्यभिचार के द्वारा दास-दासी से
आजीविका चलाना-असतीपोषण है। यह पाप का हेतु है। अत: इसका त्याग करना चाहिए।
1727} व्यसनात् पुण्यबुद्ध्या वा दवदानं भवेद् द्विधा। सर:शोषः सरः सिन्धु-हृदादेरम्बुसंप्लवः ॥
(है. योग. 3/113) ॥ दवदान दो प्रकार से होता है- आदत (अज्ञानता) से अथवा पुण्यबुद्धि से तथा सरोवर, नदी, ह्रद या समुद्र आदि में पानी निकाल कर सुखाना 'सर:शोष' है।
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(अहिंसा आदि अणुव्रती के सहयोगी कुछ विशिष्ट नियम)
[अहिंसा आदि अणुव्रतों की पूर्णता व रक्षा हेतु जैन शास्त्रों में कुछ विशिष्ट नियमों का निरूपण प्राप्त होता है, जिन्हें गुणव्रत व शिक्षाव्रत के नाम से जाना जाता है। इनके पालन से श्रावक अपनी स्थूल अहिंसा-साधना को अधिक सशक्त रूप से सम्पन्न कर पाता है।]
O अहिंसा-पोषक: गुणव्रत व शिक्षाव्रत
{728} परिधय इव नगराणि व्रतानि किल पालयन्ति शीलानि। व्रतपालनाय तस्माच्छीलान्यपि पालनीयानि॥
' (पुरु. 4/100/136) निश्चय ही जैसे कोट-किला नगरों की रक्षा करता है, उसी तरह शीलव्रत (-तीन 卐 गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत-ये सात व्रत) पांचों अणुव्रतों का पालन अर्थात् रक्षण करते हैं। इसलिए व्रतों का पालन करने के लिए सात शीलव्रतों का भी पालन करना चाहिए।
[दिव्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत-ये तीन गणव्रत हैं। सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग-परिमाणGE व्रत तथा अतिथि-संविभाग-व्रत/वैयावृत्त्य-ये चार शिक्षाव्रत हैं। इनका निरूपण आगे प्रस्तुत है:--] नभ卐
अहिंसा-विश्वकोश/3051