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REFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE E DS ॐ कारण नहीं हो सकता था? यह भी तो सम्भव था। इस प्रकार-सिंह से बच कर निकृष्ट
आचरण करने पर-भी क्या उस युग-प्रधान के द्वारा तीर्थ की हानि नहीं हो सकती थी? इस
प्रकार से भी वह तीर्थहानि हो सकती थी। अथवा क्या इस प्रकार से मारा जाकर वह सिंह + दुष्ट अभिप्राय के कारण नरक को नहीं जा सकता है? अवश्य जा सकता है। अथवा वही ॥ 卐 सिंह जीवित रहकर क्या सम्यक्त्व को नहीं प्राप्त कर सकता है? जीवित रह कर वह किसी
अतिशयवान साधु के समीप में उस सम्यक्त्व को पा करके आत्मल्याण भी कर सकता है।
इस कारण आगन्तुक दोष की सम्भावना से सिंहादिक किसी भी प्राणी का वध करना उचित 卐 नहीं है।
FOजीव के शरीर-घात से उसकी आत्मा का वध कैसे? समाधान
{703} अन्नुन्नाणुगमाओ भिन्नाभिन्नो तओ सरीराओ। तस्स य वहमि एवं तस्स वहो होइ नायव्वो॥
(श्रा.प्र. 190)
(यहां कोई शंका करता है कि आत्मा तो अमर होती है। उसका घात तो संभव नहीं। * फिर, शरीर-घात करने वाले को जीव-वध का दोष कैसे लगता है? इसका समाधान यहां
पस्तुत है:-) परस्पर में अनुप्रविष्ट होने के कारण उसे (जीव को) शरीर से कथंचित् भिन्न 卐 और कथंचित् अभिन्न मानना चाहिए। इस प्रकार शरीर का वध करने पर उस जीव का वध ' होता है- ऐसा जानना चाहिए।
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तप्पज्जायविणासो दुक्खुप्पाओ अ संकिलेसो य। एस वहो जिणभणिओ तजेयव्वो पयत्तेणं ॥
(श्रा.प्र. 191) जिससे जीव की उस पर्याय का-मनुष्य व हिरण आदि अवस्था- विशेष काविनाश होता है, उसे दुःख उत्पन्न होता है, तथा परिणाम में संक्लेश होता है, उसे जिन ॐ भगवान् के द्वारा 'वध' कहा गया है। उसे प्रयत्नपूर्वक छोड़ना चाहिए।
F [जैन संस्कृति खण्ड/294
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