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न य सइ तसभावंमि थावरकायगयं तु सो वहइ। तम्हा अणायमेयं मुद्धमइविलोहणं नेयं ॥
(श्रा.प्र. 132) इसके अतिरिक्त, त्रसघात का प्रत्याख्यान करने वाला वह श्रावक त्रस अवस्था के 卐 रहने पर उस स्थावरकाय को प्राप्त हुए जीव का घात नहीं करता। इसलिए यह नागरिक वध
का उदाहरण वस्तुतः उदाहरण न हो कर मूढ़ बुद्धियों को लुब्ध करने वाला अनुदाहरण ही # समझना चाहिए।
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[जिन जीवों के त्रस नामकर्म का उदय रहता है, वे त्रस कहलाते हैं। इससे जो जीव मरण को प्राप्त होते हैं, स्थावरकाय को प्राप्त होते हैं वे त्रस नहीं रहते, किंतु स्थावर नामकर्म के उदय से स्थावर होते हैं। इस प्रकार त्रस पर्याय के विनष्ट हो जाने पर यदि त्रस प्राणि-वध का प्रत्याख्यान करने वाला कोई श्रावक प्रयोजन-वश उनका घात करता है तो इससे उसका वह व्रत भंग होने वाला नहीं है। वादी के अभिमतानुसार 'भूत' शब्द का प्रयोग करने पर भी वे त्रस नहीं हो सकते, किंतु स्थावर नाम कर्म के उदय से वे स्थावर ही रहने वाले हैं। कारण यह कि त्रस पर्याय के रहते हुए कोई जीव स्थावर हो ही नहीं सकता। इससे यह निश्चित है कि नागरिक-वध का वह उदाहरण यथार्थ में उदाहरण नहीं है। इस प्रकार प्रथम अणुव्रत को ग्रहण कराते हुए जो श्रावक से त्रस प्राणियों के वध का प्रत्याख्यान कराया जाता है, वह सर्वथा निर्दोष है, यह सिद्ध होता है।]
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O हिंसक पशुओं के साथ श्रावक का अहिंसक व्यवहार
(औचित्य सम्बन्धी शंका-समाधान)
700) सव्ववहसमत्थेणं पडिकनाणुव्वएण सिंहाई। ण घाईओ त्ति तेणं तु घाइतो जुगप्पहाणो उ॥ तत्तो तित्थुच्छेओ धणियमणत्थो पभूयसत्ताणं । ता कइ न होइ दोसो तेसिमिह निवित्तिवादीणं ॥ तम्हा नेव निवित्ती कायव्वा अवि य अप्पणा चेव। अद्धोचियमालोचिय अविरुद्ध होइ कायव्वं ॥
(श्रा.प्र. 165-167) ___समस्त दुष्ट प्राणियों के वध में समर्थ किसी श्रावक ने अणुव्रत को स्वीकार कर लेने 卐 के कारण सिंह आदि हिंस्र प्राणी का घात नहीं किया। उधर उस सिंह ने किसी युग-प्रधान-卐
EFERENEUREFERENEURSEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/292
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