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.....................कर्मतः खरकर्म तु। तस्मिन् पंचदशमलान् कर्मादानानि संत्यजेत् ॥ अंगार-वन-शकट-भाटक-स्फोटजीविका। दंत-लाक्षा-रस-केश-विषवाणिज्यकानि च ॥ यंत्रपीड़ा-निलांछनमसतीपोषणं तथा। दवदानं सर:शोष इति पञ्चदश त्यजेत् ॥
(है. योग. 3/98-100) कर्म की अपेक्षा से प्राणिघातक कठोर कर्म में परिगणित (परिसीमित) 15 कर्मादान 卐 हैं, जो अहिंसा व्रत में मलिनता पैदा करने वाले हैं, अतः उनका भलीभांति त्याग करना
चाहिए। वे पंद्रह कर्मादान इस प्रकार हैं- 1.अंगारजीविका, 2. वनजीविका, 3. शकटजीविका, 卐 4. भाटकजीविका, 5. स्फोटजीविका, 6. दंतवाणिज्य, 7. लाक्षावाणिज्य, 8. रसवाणिज्य, 9. 卐 के शवाणिज्य, 10. विषवाणिज्य, 11. यंत्रपीड़ा कर्म, 12. निलांछन कर्म, 13. असतीपोषण,
14. दवदान (दावाग्नि लगाने का कर्म), 15. सर:शोष (तालाब आदि का सुखाना)। श्रावक को इन 15 कर्मादान रूप अतिचारों का त्याग करना चाहिए। (इन जीविका व व्यापार आदि का स्पष्टीकरण आगे किया जा रहा है:-)
{717) अंगार-भ्राष्ट्रकरणं कुम्भायःस्वर्णकारिता। ठठार-त्वेष्टकापाकाविति मुगारजीविका॥
(है. योग. 3/101) लकड़ी को जला कर कोयले बनाना और उसका व्यापार करना, भड़भूजे, कुम्भकार लुहार, सुनार, ठठेरे और ईंट पकाने वाले, इत्यादि का कार्य कर जीविका चलाना 'अंगार y; जीविका' कहलाती है।
{718)
शकटोक्षलुलायोष्ट्रखराश्वतरवाजिनाम् । भारस्य वहनाद् वृत्तिर्भवेद् भाटकजीविका॥
(है. योग. 3/104) गाड़ी, बैल,ऊंट, भैंसा, गधा, खच्चर, घोड़ा आदि पर भार लाद कर किराया लेना अथवा इन्हें किराये पर दे कर आजीविका चलाना 'भाटक (भाड़ा) जीविका' कहलाता है। NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN
[जैन संस्कृति खण्ड/302