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{649)
मधुकृवातघातोत्थं मध्वशुच्यपि बिन्दुशः। खाद्न् बघ्नत्यघं सप्तग्रामदाहाहसोऽधिकम् ॥
___ (सा. ध. 2/11) मधुमक्खियों के समूह के घात से उत्पन्न अपवित्र मधु की एक बूंद को भी खाने वाला सात गांवों को जलाने से जितना पाप होता है, उससे भी अधिक पाप का बन्ध करता है।
{650) मक्षिकामुखनिष्ठ्यूतं जन्तुघातोद्भवं मधु। अहो पवित्रं मन्वाना देवस्नानं प्रयुञ्जते ॥
(है. योग. 3/41) ____ अहो! कितने खेद की बात है कि मधुमक्खी के मुंह से वमन किये हुए और अनेक जंतुओं की हत्या से निष्पन्न मधु को पवित्र मानने वाले (अन्यतीर्थिक) लोग (शंकर आदि) देवों के अभिषेक में इसका उपयोग करते हैं।
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{651) उदुम्बर - वट - प्लक्ष-काकोदुम्बरशाखिनाम् । पिप्पलस्य च नाश्नीयात्, फलं कृमिकुलाकुलम्॥
(है. योग. 3/42) उदुम्बर (गुल्लर), बड़, अंजीर, काकोदुम्बर (कठूमर), पीपल; इन पांचों वृक्षों के फल # अगणित जीवों (के स्थान) से भरे हुए होते हैं। इसलिए ये पांचों ही उदुम्बर-फल त्याज्य हैं।
(652) स्वयं परेण वा ज्ञातं फलमद्याद् विशारदः। निषिद्धे विषफले वा, माभूदस्य प्रवर्त्तनम्॥
___(है. योग. 3/47) स्वयं को या दूसरे को जिस फल की पहिचान नहीं है, जिसे कभी देखा, सुना या 卐 जाना नहीं है; उस फल को न खाए।
[बुद्धिशाली व्यक्ति वही फल खाये, जो उसे ज्ञात है। चतुर आदमी अनजाने में (अज्ञानतावश) अगर 9 卐 अज्ञात फल खा लेगा तो, निपिद्ध फल खाने से उसका व्रतभंग होगा, दूसरे, कदाचित् कोई जहरीला फल खाने में आज 卐जाय तो उससे प्राणनाश हो जाएगा। इसी दृष्टि से अज्ञातफल के भक्षण में प्रवृत्त होने का निषेध किया गया है।] NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEK
अहिंसा-विश्वकोश/273]
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