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(ब्रहाचारी के लिए अणुव्रत पालनीय-)
(695)
ततोऽस्याधीतविद्यस्य व्रतवृत्त्यवतारणम्। विशेषविषयं तच्च स्थितस्यौत्सर्गिके व्रते ॥ मधुमांस परित्यागः पञ्चोदुम्बरवर्जनम् । हिंसादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात् सार्वकालिकम् ॥
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समस्त विद्याओं का अध्ययन कर लेने के बाद उस ब्रह्मचारी की व्रतावतरण क्रिया 卐 होती है। इस क्रिया में वह साधारण व्रतों का तो पालन करता ही है परन्तु अध्ययन के समय जो विशेष व्रत ले रखे थे उनका परित्याग कर देता है । इस क्रिया के बाद उस के लिए मधुत्याग, मांसत्याग, पांच उदुम्बर फलों का त्याग और हिंसा आदि पांच स्थूल पापों का , ये सदा काल अर्थात् जीवन पर्यन्त रहने वाले पालनीय व्रत रह जाते हैं ।
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त्याग,
(696)
एवंप्रायेण लिङ्गेन विशुद्धं धारयेद् व्रतम् । स्थूलहिंसाविरत्यादि ब्रह्मचर्योपबृंहितम् ॥
हिंसा का त्याग (अहिंसाणुव्रत) आदि व्रत धारण करे ।
o स्थावर - हिंसा से अहिंसा अणुव्रत भंग नहीं:
(शास्त्रीय शंका-समाधान )
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( आ. पु. 38 / 121-122)
ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह व्रतोचित चिह्नों से विशुद्ध और ब्रह्मचर्य के साथ स्थूल
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(311. g. 38/114)
(697)
तसपाणघायविरई तत्तो थावरगयाण नागरग-वहनिवित्ती - नायाओ इ पच्चक्खायंमि इहं नागरगवहम्मि निग्गयं पि तओ ।
वह भावा । नेच्छति ॥
तं वहमाणस्स न किं जायइ वहविरइभंगो उ॥
इय अवि सेसा तसपाणघायविरई काउ तं तत्तो ।
新编
अहिंसा - विश्वकोश। 2891
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