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EFEREFERESE
N A 卐 [बन्धः- इसका अर्थ बांधना है। पशु आदि को इस प्रकार बांधना, जिससे उनको कष्ट हो, बन्ध में परिगणित है
होता है। व्याख्याकारों ने दास आदि के बांधने को भी 'बन्ध' बताया है। उन्हें भी इस प्रकार बांधना, जिससे उन्हें कष्ट हो, इस अतिचार में शामिल है। दास आदि को बांधने का उल्लेख भारत के उस समय की ओर संकेत करता है, ज दास और दासी पशु तथा अन्यान्य अधिकृत सामग्री की तरह खरीदे-बेचे जाते थे। स्वामी का उन पर पूर्ण अधिकार था। पशुओं की तरह वे जीवन भर के लिए उनकी सेवा करने को बाध्य होते थे।
शास्त्रों में बन्ध दो प्रकार के बतलाए गए हैं- एक अर्थ-बन्ध तथा दूसरा अनर्थ-बन्ध। किसी प्रयोजन या हेतु से बांधना अर्थ-बन्ध में आता है, जैसे किसी रोग की चिकित्सा के लिए बांधना पड़े या किसी आपत्ति से बचाने के लिए बांधना पड़े। प्रयोजन या कारण के बिना बांधना अनर्थ-बन्ध है, जो सर्वथा हिंसा है। यह अनर्थ-दंड विरमण नामक आठवें व्रत के अन्तर्गत अनर्थ-दंड में जाता है। प्रयोजनवश किए जाने वाले बन्ध के साथ क्रोध, क्रूरता, द्वेष जैसे कलुषित भाव नहीं होने चाहिएं। यदि होते हैं तो वह अतिचार है। व्याख्याकारों ने अर्थ-बन्ध को सापेक्ष निरपेक्ष- दो भेदों में बांटा है। सापेक्ष बन्ध वह है, जिससे छूटा जा सके, उदाहरणार्थ- कहीं आग लग जाय, वहां
पशु बंधा हो, वह यदि हलके रूप में बंधा होगा तो वहां से छूट कर बाहर जा सकेगा। ऐसा बन्ध अतिचार में नहीं CE आता। पर वह बन्ध, जिससे भयजनक स्थिति उत्पन्न होने पर प्रयत्न करने पर भी छूटा न जा सके, निरपेक्ष बन्ध है। TE वह अतिचार में आता है। क्योंकि छूट न पाने पर बंधे हुए प्राणी को घोर कष्ट होता है, उसका मरण भी हो
वध-साधारणतया वध का अर्थ किसी को जान से मारना है। पर, यहां वध इस अर्थ में प्रयुक्त नहीं E क्योंकि किसी को जान से मारने पर तो अहिंसा व्रत सर्वथा खंडित ही हो जाता है। वह तो अनाचार है। यहां वध घातक ज प्रहार के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, ऐसा प्रहार जिससे व्यक्ति के अंग-उपांग को हानि पहुंचे।
छविच्छेद- छवि का अर्थ सुन्दरता है। इसका एक अर्थ अंग भी किया जाता है। छविच्छेद का तात्पर्य मैं किसी की सुन्दरता, शोभा मिटा देने अर्थात् अंग-भंग कर देने से है। किसी का कोई अंग काट डालने से वह सहज' # ही छविशून्य हो जाता है। क्रोधावेश में किसी का अंग काट डालना इस अतिचार में शामिल है। मनोरंजन के लिए कुत्ते ॐ आदि पालतू पशुओं की पूंछ, कान आदि काट देना भी इस अतिचार में आता है। 卐 अतिभार- पशु, दास आदि पर उनकी ताकत से ज्यादा बोझ लादना अतिभार में आता है। आज की भाषा卐 卐 में नौकर, मजदूर, अधिकृत कर्मचारी से इतना ज्यादा काम लेना, जो उसकी शक्ति से बाहर हो, अतिभार ही है। '
भक्त-पान-व्यवच्छेद-इसका अर्थ खान-पान में बाधा या व्यवधान डालना है। जैसे अपने आश्रित पशु ॐ को यथेष्ट चारा एवं पानी समय पर नहीं देना, भूखा-प्यासा रखना। यही बात दास-दासियों पर भी लागू होती है। ॐ उनकी भी खान-पान की व्यवस्था में व्यवधान या विच्छेद पैदा करना, इस अतिचार में शामिल है। आज के युग ज की भाषा में अपने नौकरों तथा कर्मचारियों आदि को समय पर वेतन न देना, वेतन में अनुचित रूप में कटौती कर जदेना, किसी की आजीविका में बाधा पैदा कर देना, सेवकों तथा आश्रितों से खूब काम लेना, पर उनके अनुपात
में उचित व पर्याप्त भोजन न देना, वेतन न देना, इस अतिचार में शामिल है। ऐसा करना बुरा कार्य है, जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ है।
इन अतिचारों में पशुओं की विशेष चर्चा आने से स्पष्ट है कि तब पशु-पालन एक गृहस्थ के जीवन का आवश्यक भाग था। घर, खेती, तथा व्यापार के कार्यों में पशु का विशेष उपयोग था। आज सामाजिक स्थितियां बदल गई हैं। निर्दयता, क्रूरता, अत्याचार आदि अनेक नये रूपों में उभरे हैं। इसलिए धर्मोपासक को अपनी दैनिन्दिन जीवन-चर्या को बारीकी से देखते हुए इन अतिचारों के मूल भाव को ग्रहण करना चाहिए और निर्दयतापूर्ण कार्यों का
वर्जन करना चाहिए। REFERENTIFIEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET
[जैन संस्कृति खण्ड/288
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