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FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFER ॐ और न अनुमति देता हूं। काय से कृत-कारित-अनुमतरूप हिंसा आदि को छोड़ने में समर्थ
नहीं हूं। सूत्र में कहा है-कृत-कारित-अनुमत के भेद से तीन भेद रूप हिंसा आदि को मनवचन-काय से अथवा मन व वचन से अथवा काय से त्याग नहीं करता है।
तब गृहस्थ कैसे त्याग करता है यह बतलाते हैं
कृत और कारित के भेद से दो भेदरूप हिंसा आदि को मन-वचन-काय से 卐 छोड़ता है। कृत कारित रूप हिंसादि को वचन और काय से छोड़ता है। अथवा कृत
कारित रूप हिंसा आदि को एक काय से छोड़ता है। इसी से कहा है- 'कृत-कारित रूप F हिंसा आदि को तीन रूप से, दो रूप से या एक रूप से छोड़ता है।' अथवा हिंसा के एक में स्वयं करने को मन-वचन-काय से त्यागता है। 'मैं मन से, वचन से, काय से स्थूल 卐 हिंसादि पांच पापों को नहीं करता हूं' इस प्रकार संकल्पपूर्वक त्याग करता है। अथवा
स्वयं करने को वचन और काय से त्यागता है या एक काय से त्यागता है। कहा है-एक कृत को तीन प्रकार से त्यागता है।
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स्वल्पकालवर्त्यपि अहिंसाव्रतं करोत्यात्मनो महान्तमुपकारमित्याख्यानं । कथयति
पाणो वि पाडिहेरं पत्तो छूढो वि सुंसुमारहदे। एगेण एक्कदिवसकदेण हिंसावदगुणेण॥
(भग. आ. विजयो. 816) थोड़े समय के लिए पाला गया भी अहिंसा व्रत आत्मा का महान् उपकार करता है -इसे दृष्टान्त द्वारा कहते हैं
यमपाल चण्डाल भी एक चतुर्दशी के दिन किसी को फांसी न देने के एक अहिंसाव्रत के गुण से मगरमच्छों से भरे तालाब में फेंक दिए जाने पर प्रातिहार्य को प्राप्त हुआ- देवों ने उसकी पूजा की।
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FFFFFFFFFEREFER [जैन संस्कृति खण्ड/284
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