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(664) पंच उ अणुव्वयाइं थूलगपाणिवहविरमणाईणि। तत्थ पढम इमं खलु पन्नत्तं वीयरागेहिं ॥ थूलपाणिवहस्स विरई, दुविहो असो वहो होई। संकप्पारं भेहि य, वजइ संकप्पओ विहिणा॥
(श्रा.प्र. 106-107) स्थूल प्राणिवध-विरमण आदि अणुव्रत पांच ही हैं। उनमें वीतराग (तीर्थंकरों) द्वारा स्थूलप्राणातिपात-विरमण को प्रथम अणुव्रत के रूप में उपदिष्ट किया गया है।
स्थूल प्राणियों के वध से विरत होने का नाम स्थूल प्राणिवधविरति अणुव्रत है। वह वध संकल्प और आरम्भ के भेद से दो प्रकार का है। उसमें प्रथम अणुव्रत का धारक श्रावक आगमोक्त विधि के अनुसार संकल्प से ही उस वध का परित्याग करता है।
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{665) विरतिः स्थूलहिंसादेर्द्विविध-त्रिविधादिना। अहिंसादीनि पंचाणुव्रतानि जगदुर्जिनाः॥
(है. योग. 2/18) स्थूल हिंसा आदि से द्विविध-त्रिविध आदि यानी 6 प्रकार (मन, वचन, काय तथा कृत, कारित, अनुमोदित आदि रूप) से विरत होने को श्री जिनेश्वरदेवों ने अहिंसादि पांच अणुव्रत रूप से वर्णित किया है।
{666} पंचाणुव्वया पण्णत्ता, तं जहा- थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे।
___ (ठा. 5/1/2) अणुव्रत पांच कहे गये हैं। जैसे
1. स्थूल प्राणातिपात (त्रस जीव-घात) से विरमण । ___2. स्थूल मृषावाद (धर्म-घातक, लोक-विरुद्ध असत्य भाषण) से विरमण।
3. स्थूल अदत्तादान (राज-दण्ड, लोक-दण्ड देने वाली चोरी) से विरमण। 4. स्वदारसन्तोष (पर-स्त्री सेवन से विरमण)।
5. इच्छापरिमाण (इच्छा-परिग्रह का परिमाण करना)। REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE*
अहिंसा-विश्वकोश/2771