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{660) मांसमद्यमधुबूतक्षीरिवृक्षफलोज्झनम् । वेश्यावधूरतित्याग इत्यादिनियमो मतः॥
(ह. पु. 18/48) . मद्य-त्याग, मांस-त्याग, मधु-त्याग, द्यूत-त्याग, क्षीरिफल-त्याग, वेश्या-त्याग तथा ॥ अन्यवधू-त्याग आदि 'नियम' कहलाते हैं (जो श्रावक के लिए पालनीय होते हैं)।
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{661) पिप्पलोदुम्बर-प्लक्ष-वट-फल्गु-फलान्यदन् । हन्त्याणि त्रसान् शुष्काण्यपि स्वं रागयोगतः॥
(सा. ध. 2/13) पीपल, उदुम्बर, पिलखन, बड़ और कठूमर के गीले फलों को खाने वाला त्रस जीवों को मारता है। सूखे फलों को भी खाने वाला राग के सम्बन्ध से अपनी आत्मा का घात 卐 करता है।
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O अहिंसा आदि अणुव्रतों का पालनः श्रावकोचित आचार
{662) हिंसादेर्देशतो मुक्तिरणुव्रतमुदीरितम्।
(ह. पु. 18/46) हिंसादि पापों का एकदेश (आंशिक रूप से) छोड़ना अणुव्रत कहा गया है।
{663 पंचेव अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव। सिक्खावयाई चउरो सावगधम्मो दुवालसहा॥
(श्रा.प्र. 6) ___पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत-इस प्रकार से वह श्रावक धर्म बारह 卐 प्रकार का है।
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[जैन संस्कृति खण्ड/276