________________
1613}
न वीतरागात् परमस्ति दैवतम्।
(अयोः डी. 28)
वीतराग को छोड़ कर अन्य कोई श्रेष्ठ 'देव' नहीं है।
{614) कोदण्ड-दण्ड-चक्रासि-शूल-शक्तिधराः सुराः। हिंसका अपि हा! कष्टं, पूज्यन्ते देवताधिया॥
(है. योग. 2/49) अहा! यह अतिकष्ट की बात है कि धनुष, दण्ड, चक्र, तलवार, शूल और भाला (शक्ति) रखने (धारण करने) वाले हिंसक देव भी देवत्व-बुद्धि (दृष्टि) से पूजे जाते हैं।
(6151
दुर्मन्त्रास्तेऽत्र विज्ञेया ये युक्ताः प्राणिमारणे ॥ विश्वेश्वरादयो ज्ञेया देवताः शान्तिहेतवः। क्रूरास्तु देवता हेया यासां स्याद् वृत्तिरामिषैः॥ निर्वाणसाधनं यत् स्यात्तल्लिङ्गं जिनदेशितम्। एणाजिनादिचिह्न तु कुलिङ्गं तद्धि वैकृतम्॥
(आ. पु. 39/26-28) जो प्राणियों की हिंसा करने में प्रयुक्त होते हैं उन्हें दुर्मन्त्र अर्थात् खोटे मन्त्र ही समझना चाहिए। शान्ति को करने वाले तीर्थंकर आदि ही देवता हैं। इनके सिवाय जिनकी
मांस वृत्ति से है वे दुष्ट देवता छोड़ने योग्य है। जो साक्षात् मोक्ष का कारण है, ऐसा जिनेन्द्र " देव का कहा हुआ निर्ग्रन्थपना ही सच्चा लिङ्ग है। इसके सिवाय मृगचर्म आदि के रूप में ' बनाया गया चिह्न कुलिङ्गियों का बनाया हुआ कुलिङ्ग है।
如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
明明明明明明
{616) अहिंसालक्षणो धर्मो यतयो विगतस्पृहाः। देवोऽर्हन्नैव निर्दोषः॥
(उ. पु. 63/373) धर्म अहिंसा रूप है, मुनि इच्छा-रहित होते हैं और रागादि दोषों से रहित अर्हन्त ही
ॐ देव हैं।
הברב-ביפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפ
ESELELELELELELELELELELELELELELEVELELELELELELELELELELELELELE [जैन संस्कृति खण्ड/262