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1631) हंता पलस्य विक्रेता संस्कर्ता भक्षकस्तथा। क्रेताऽनुमन्ता दाता च घातका एव यन्मनुः। अनुमन्ता विशसिता, निहन्ता, क्रयविक्रयी। संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः॥
(है. योग. 3/20-21) शस्त्रादि से घात करने वाला, मांस बेचने वाला, मांस पकाने वाला, मांस खाने वाला, मांस का खरीददार, उसका अनुमोदन करने वाला और मांस का दाता अथवा यजमान, ये सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप (परम्परा) से जीव के घातक (हिंसक) ही हैं।
मनु ने भी कहा है कि मांस खाने का अनुमोदन करने वाला, प्राणी का वध करने वाला, अंग-अंग काट कर विभाग करने वाला, मांस का ग्राहक और विक्रेता, मांस पकाने
वाला, परोसने वाला या भेंट देने वाला और खाने वाला; ये सभी एक ही कोटि के घातक म (हिंसक) हैं। (द्र. मनुस्मृति, 5वां अध्याय)
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मांसास्वादनलुब्धस्य, देहिनं देहिनं प्रति । हन्तुं प्रवर्तते बुद्धिः, शाकिन्या इव दुर्धियः॥
(है. योग. 3/27) मांस के आस्वादन में लोलुप बने हुए दुर्बुद्धि मनुष्य की बुद्धि शाकिनी की तरह जिस किसी जीव को देखा, उसे ही मारने में प्रवृत्त हो जाती है।
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मांसादिषु दया नास्ति न सत्यं मद्यपायिषु । आनृशंस्यं न मत्र्येषु मधूदुम्बरसेविषु॥
(उपासका. 24/293) जो मांस खाते हैं, उनमें दया नहीं होती। जो शराब पीते हैं वे सच नहीं बोल सकते। और जो मधु और उदुम्बर फलों का भक्षण करते हैं, उनमें दया या करुणा नहीं होती।
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EEEEEEEEEEEEEEE (जैन संस्कृति खण्ड/268