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FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFIg ॐ शठतापूर्वक हनन करने (दंड देने) की बात चित्त में जमाए रखता है, क्योंकि वह (अप्रत्याख्यानी
बाल जीव) प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह ही पापस्थानों में ओतप्रोत
रहता है। इसीलिए भगवान् ने ऐसे जीव के लिए कहा है कि वह असंयत, अविरत, पापकर्मों 卐 का (तप आदि से) नाश एवं प्रत्याख्यान न करने वाला, पापक्रिया से युक्त, संवररहित, 卐 ॐ एकान्त रूप से प्राणियों को दंड देने (हनन करने) वाला, सर्वथा बाल (अज्ञानी) एवं सर्वथा है
सुप्त भी होता है। वह अज्ञानी जीव चाहे मन, वचन, काया और वाक्य का विचार पूर्वक
(पापकर्म में) प्रयोग न करता हो, भले ही वह (पापकर्म करने का) स्वप्न भी न देखता हो, 卐 यानी उसकी चेतना (ज्ञान) बिलकुल अस्पष्ट ही क्यों न हो, तो भी वह (अप्रत्याख्यानी होने 卐के कारण) पापकर्म का बंध करता रहता है। जैसे वध का विचार करने वाला घातक पुरुष
उस दुर्विचार चित्त में लिए हुए अहर्निश, सोते या जागते उसी धुन में रहता है, वह उनका
(प्रत्येक का), शत्रु-सा बना रहता है, उसके दिमाग में धोखे देने के दुष्ट (मिथ्या) विचार ॐ घर किए रहते हैं, वह सदैव उनकी हत्या करने की धुन में रहता है, शठतापूर्वक प्राणि-दंड 卐 ॐ के दुष्ट विचार ही चित्त में किया करता है, उसी तरह (अप्रत्याख्यानी भी) समस्त प्राणों,
भूतों-जीवों और सत्त्वों के, प्रत्येक के प्रति चित्त में निरन्तर हिंसा के भाव रखने वाला और प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक के 18 ही पापस्थानों से अविरत, अज्ञानी जीव # दिन-रात, सोते या जागते सदैव उन प्राणियों का शत्रु-सा बना रहता है, उन्हें धोखे से मारने ' ॐ का दुष्ट विचार करता है, एवं नित्य उन जीवों के शठतापूर्वक (दंड) घात की बात चित्त में
घोटता रहता है। स्पष्ट है कि ऐसे अज्ञानी जीव जब तक प्रत्याख्यान नहीं करते, तब तक वे पापकर्म से जरा भी विरत नहीं होते, इसलिए उनके पापकर्म का बंध होता रहता है।
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जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा एतेसिं णं छज्जीवनिकाए पडुच्च तं.म पुढविकायं जाव तसकायं, से एगतिओ पुढविकाएण किच्चं करेति वि कारवेति वि, 卐 तस्स णं एवं भवति-एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि, णो
चेव णं से एवं भवति इमेण वा इमेण वा, से य तेणं पुढविकाएणं किच्चं करेइ वा कारवेइ वा, से य ताओ पुढविकायातो असंजयअविरयअपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे म यावि भवति, एवं जाव तसकायातो त्ति भाणियव्वं, से एगतिओ छहिं जीवनिकाएहिं 卐 किच्चं करेति वि कारवेति वि, तस्स णं एवं भवति-एवं खलु छहिं जीवनिकाएहिं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि, णो चेवणं से एवं भवति-इमेहिं वा इमेहिं वा, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं जाव कारवेति वि, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं असंजयF F EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENy
अहिंसा-विश्वकोश/2311