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{515} म किं ते? करिसण-पोक्खरिणी-वावि-वप्पिणि-कूव-सर-तलाग-चिइ-वेइयॐ खाइय-आराम-विहार-थूभ-पागार-दार-गोउर-अट्टालग-चरिया-सेउ-संकमपासाय-विकप्प-भवण-घर-सरण-लयण-आवण-चेइय-देवकुल-चित्तसभा-पवा
आयतणा-वसह-भूमिधर-मंडवाण कए भायणभंडोवगरणस्स य विविहस्स य अट्ठाए म पुढविं हिंसंति मंदबुद्धिया।
(प्रश्न. 1/1/सू.13) वे कारण कौन-से हैं, जिनसे (पृथ्वीकायिक) जीवों का वध किया जाता है? ।
(उत्तर-) कृषि, पुष्करिणी (चौकोर बावड़ी जो कोमलों से युक्त हो), बावड़ी, क्यारी, कूप, सर, तालाब, भित्ति, वेदिका, खाई, आराम, विहार (बौद्धभिक्षुओं ने ठहरने का
स्थान), स्तूप, प्राकार, द्वार, गोपुर (नगरद्वार-फाटक), अटारी, चरिका (नगर और प्राकार 卐 के बीच का आठ हाथ प्रमाण मार्ग), सेतु-पुल, संक्रम (ऊबड़-खाबड़ भूमि को पार करने 卐 का मार्ग), प्रासाद-महल, विकल्प-विकप्प-एक विशेष प्रकार का प्रासाद, भवन, गृह,
सरण-झोंपड़ी, लयन-पर्वत खोद कर बनाया हुआ स्थानविशेष, दूकान, चैत्य-चिता पर
बनाया हुआ चबूतरा, छतरी और स्मारक, देवकुल-शिखर-युक्त देवालय, चित्रसभा, प्याऊ, ॐ आयतन, देवस्थान, आवसथ-तापसों का स्थान, भूमिगृह-भौंयरा-तलघर और मंडप आदि । 卐 के लिए तथा नाना प्रकार प्रकार के भाजन-पात्र, भाण्ड-बर्तन आदि एवं उपकरणों के लिए
मन्दबुद्धि जन पृथ्वीकाय जीवों की हिंसा करते हैं।
जल चम
{516} जलं च मजण-पाण-भोयण-वत्थधोवण-सोयमाइएहिं।
__ (प्रश्र. 1/1/.14) मजन-स्नान, पान-पीने, भोजन, वस्त्र धोने एवं चौच-शरीर, गृह आदि की शुद्धि इत्यादि कारणों से जलकायिक जीवों की हिंसा की जाती है।
{517) से तं जाणह जमहं बेमि। तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपित्ता विलुपित्ता उद्दवइत्ता 'अकडं करिस्सामि' त्ति मण्णमाणे, जस्स वि य णं करेइ।
_ (आचा. 1/2/5 सू. 94) " म तुम उसे जानो, जो मैं कहता हूं। अपने को चिकित्सा-पंडित बताते हुए कुछ वैद्य, EFFENFYFFFFFFFYFYEYEYELELESEEEEEEEEEEEEEE *
अहिंसा-विश्वकोश/225)