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तपः श्रुतयमज्ञानध्यानदानादिकर्मणाम्। सत्यशीलवतादीनामहिंसा जननी मता ॥
(ज्ञा. 8/41/513) ___ तप, श्रुत (शास्त्रका ज्ञान), यम (महाव्रत), ज्ञान (बहुत जानना), ध्यान और दान * करना तथा सत्य, शील, व्रतादिक जितने उत्तम कार्य हैं, उन सब की माता एक अहिंसा ही म है। अहिंसाव्रत के पालन बिना, उपर्युक्त गुणों में से एक भी संपन्न/सफल नहीं होता, इस के कारण अहिंसा ही समस्त धर्मकार्यों को उत्पन्न करने वाली माता है।
{361) सत्याद्युत्तरनिःशेषयमजातनिबन्धनम् । शीलैश्वर्याद्यधिष्ठानमहिंसाख्यं महाव्रतम्॥
(ज्ञा. 8/6/478) अहिंसा नामक महाव्रत सत्य (अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) आदि चार महाव्रतों CE का कारण है, क्योंकि सत्य, अचौर्य आदि, बिना अहिंसा के हो ही नहीं सकते। शीलादिसहित 卐 उत्तरगुणों की चर्या का एवं ऐश्वर्य आदि का स्थान भी यह अहिंसा ही है। अर्थात् समस्त 卐 उत्तरगुण भी इस अहिंसा महाव्रत पर आश्रित हैं।
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O अहिंसा भगवती की महिमाः विविध दृष्टियों से
{362} सर्वे जीवदयाधारा गुणास्तिष्ठन्ति मानुषे। सूत्राधाराः प्रसूनानां हाराणां च सरा इव॥
(पद्म. पं. 6/39) जिस प्रकार माला में डोरा पुष्पों (के हार को एकजुट रखने में उन) का आधारभूत 卐 होता है, वैसे ही, मनुष्य में सभी गुणों की आधार 'जीव-दया' होती है।
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[जैन संस्कृति खण्ड/166
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