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पश्चात् वह विविध प्रकार से भोगोपभोग करने के बाद बची हुई विपुल अर्थ-सम्पदा से महान् उपकरण वाला बन जाता है। # एक समय ऐसा आता है, जब उस सम्पत्ति में से दायाद- बेटे-पोते हिस्सा बांट लेते 卐 हैं, चोर चुरा लेते हैं, राजा उसे छीन लेते हैं। या वह नष्ट-विनष्ट हो जाती है। या कभी गृह
दाह के साथ जल कर समाप्त हो जाती है। इस प्रकार वह अज्ञानी पुरुष, दूसरों के लिए क्रूर म कर्म करता हुआ अपने लिए दुःख उत्पन्न करता है, फिर उस दु:ख से त्रस्त हो वह सुख की फू खोज करता है, पर अन्त में उसके हाथ दुःख ही लगता है। इस प्रकार वह मूढ विपर्यास
(विपरीत/प्रतिकूल स्थिति) को प्राप्त होता है।
॥ O हिंसात्मक परिग्रह त्याज्य
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{456) बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः॥ (सूत्र)
(टीका-) आरम्भः प्राणिपीडाहेतुर्व्यापारः। ममेदंबुद्धिलक्षण:परिग्रहः। आरम्भाश्च परिग्रहाश्च आरम्भपरिग्रहाः।बहव आरम्भपरिग्रहा यस्य स बह्वारम्भपरिग्रहः। + तस्य भावो बह्वारम्भपरिग्रहत्वम्। हिंसादिक्रूरकर्माजस्रप्रवर्तनपरस्वहरण-विषयातिगृद्धिकृष्णलेश्याभिजातरौद्रध्यानमरणकालतादिलक्षणो नारकस्यायुष आस्रवो भवति।
(सर्वा. 6/15/638) बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह वाले का भाव नरकायु का आस्रव है। (सूत्र)
(टीका-) प्राणियों को दुःख पहुंचाने वाली प्रवृत्ति करना 'आरम्भ' है। यह वस्तु # मेरी है- इस प्रकार का संकल्प रखना 'परिग्रह' है। जिसके बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह 卐 हो, वह बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह' वाला कहलाता है और उसका भाव बह्वारम्भपरिग्रहत्व
है। हिंसा आदि क्रूर कार्यों में निरन्तर प्रवृत्ति, दूसरे के धन का अपहरण, इन्द्रियों के विषयों
में अत्यन्त आसक्ति तथा मरने के समय कृष्ण लेश्या और रौद्रध्यान आदि का होना-ये सभी 卐 नरकायु के आस्रव (कारण/द्वार) हैं।
如明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那
[जैन संस्कृति खण्ड/198