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SENEFFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ॐ इच्चेते कलहासंगकरा भवंति। पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज अणासेवणाए ) त्ति बेमि।
(आचा. 1/5/4 सू. 164) 卐 ये काम-भोग कलह (कषाय) और आसक्ति (द्वेष और राग) पैदा करने वाले होते
हैं। स्त्री-संग से होने वाले ऐहिक एवं पारलौकिक दुष्परिणामों को आगम के द्वारा तथा ॐ अनुभव द्वारा समझ कर आत्मा को उनके अनासेवन की आज्ञा दे। अर्थात् काम-भोग के न 卐 सेवन करने का सुदृढ़ संकल्प करे-ऐसा मैं कहता हूं।
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रागो दोसो मोहो कसायपेसुण्ण संकिलेसो य। ईसा हिंसा मोसा सूया तेणिक्क कलहो य॥ जंपणपरिभवणियडिपरिवादरिपुरोगसोगधणणासो। विसयाउलम्मि सुलहा सव्वे दुक्खावहा दोसा॥
(भग. आ. 914--915) राग, द्वेष, मोह, कषाय, पैशुन्य- दूसरे के दोष कहना, संक्लेश, ईर्ष्या, हिंसा, झूठ, न ॥ असूया- दूसरे के गुणों को न सहना, चोरी, कलह, वृथा बकवाद, तिरस्कार, ठगना, पीठ के पीछे बुराई करना, शत्रु, रोग, शोक, धननाश इत्यादि सब कुछ दुःखदायी दोष विषयासक्त के व्यक्ति में सुलभ होते हैं।
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सायं गवेसमाणा, परस्स दुक्खं उदीरंति।
(आचा. नि. 94) कुछेक मनुष्य स्वयं के सुख की खोज में दूसरों को दुःख पहुंचा देते हैं।
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अहिंसा-विश्वकोश/213)