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________________ (491) 卐ty SENEFFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ॐ इच्चेते कलहासंगकरा भवंति। पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज अणासेवणाए ) त्ति बेमि। (आचा. 1/5/4 सू. 164) 卐 ये काम-भोग कलह (कषाय) और आसक्ति (द्वेष और राग) पैदा करने वाले होते हैं। स्त्री-संग से होने वाले ऐहिक एवं पारलौकिक दुष्परिणामों को आगम के द्वारा तथा ॐ अनुभव द्वारा समझ कर आत्मा को उनके अनासेवन की आज्ञा दे। अर्थात् काम-भोग के न 卐 सेवन करने का सुदृढ़ संकल्प करे-ऐसा मैं कहता हूं। (492) 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听% रागो दोसो मोहो कसायपेसुण्ण संकिलेसो य। ईसा हिंसा मोसा सूया तेणिक्क कलहो य॥ जंपणपरिभवणियडिपरिवादरिपुरोगसोगधणणासो। विसयाउलम्मि सुलहा सव्वे दुक्खावहा दोसा॥ (भग. आ. 914--915) राग, द्वेष, मोह, कषाय, पैशुन्य- दूसरे के दोष कहना, संक्लेश, ईर्ष्या, हिंसा, झूठ, न ॥ असूया- दूसरे के गुणों को न सहना, चोरी, कलह, वृथा बकवाद, तिरस्कार, ठगना, पीठ के पीछे बुराई करना, शत्रु, रोग, शोक, धननाश इत्यादि सब कुछ दुःखदायी दोष विषयासक्त के व्यक्ति में सुलभ होते हैं। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 (493) सायं गवेसमाणा, परस्स दुक्खं उदीरंति। (आचा. नि. 94) कुछेक मनुष्य स्वयं के सुख की खोज में दूसरों को दुःख पहुंचा देते हैं। REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE अहिंसा-विश्वकोश/213)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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