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TOहिंसक वातावरण का कारण : अब्रह्मसेवन
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मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं ।
विसयविसउदीरएसु अवरे परदारे हिं हम्मति विसुणिया धणणासं 卐 सयणविप्पणासं य पाउणंति।
परस्स दाराओ जे अविरया मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं ।
(प्रश्न. 1/4/सू.90) जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अर्थात् मैथुन-सेवन की वासना में अत्यन्त आसक्त हैं और मोहभृत अर्थात् मूढता अथवा कामवासना से भरे हुए हैं, वे आपस में एक दूसरे का शस्त्रों
से घात करते हैं। 卐 कोई-कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली- बढ़ाने वाली परकीय स्त्रियों के
में प्रवृत्त होकर अथवा विषय-विष के वशीभूत होकर परस्त्रियों में प्रवृत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्रीलम्पटता प्रकट हो जाती है तब (राजा या राज्य-शासन
द्वारा) धन का विनाश और स्वजनों-आत्मीय जनों का सर्वथा नाश प्राप्त करते हैं, अर्थात् 卐 उनकी सम्पत्ति और कुटुम्ब का नाश हो जाता है।
जो परस्त्रियों से विरत नहीं हैं और मैथुनसेवन की वासना में अतीव आसक्त है और मूढता या मोह से भरपूर हैं, ऐसे घोड़े, हाथी, बैल, भैंसे और मृग-वन्य पशु परस्पर लड़ कर म एक-दूसरे को मार डालते हैं।
HO अहिंसा आदि व्रतों का गूलःब्रहाचर्य
{479) तं च इम
पंच महव्वयसुव्वयमूलं, समणमणाइलसाहुसुचिण्णं । वेरविरामणपज्जवसाणं, सव्वसमुद्दमहोदहितित्थं ॥
(प्रश्र. 2/4/सू.143.1) (ब्रह्मचर्य के संबंध में) भगवान् का कथन इस प्रकार का है
FEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/208