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FFEENEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEIA 卐 करके ले जाते हैं। दारुण मति वाले, कृपाहीन-निर्दय या निकम्मे अपने-आत्मीय जनों का भी घात करते हैं। वे गृहों की सन्धि को छेदते हैं अर्थात् सेंध लगाते हैं।
इस प्रकार, जो परकीय द्रव्यों से विरत-विमुख-निवृत्त नहीं हैं ऐसे निर्दय बुद्धि वाले (वे चोर) लोगों के घरों में रक्खे हुए धन, धान्य एवं अन्य प्रकार के द्रव्य के समूहों 卐 को हर लेते हैं।
(472) ते पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया, कयकरणलद्ध-लक्खा साहसिया लहुस्सगा अइमहिच्छलोभगत्था दद्दरओवीलका य गेहिया अहिमरा # अणभंजगा भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयणिच्छूढ-लोकबज्झा उद्दोहग卐 गामघायग-पुरघायग-पंथघायग-आलीवग-तित्थभेया लहुहत्थ- संपउत्ता जूइकराई
खंडरक्ख-त्थीचोर-पुरिसचोर-संधिच्छेया य, गंथीभेयग-परधणहरण-लोमावहारा
अक्खेवी हडकारगा णिम्मद्दगगूढचोरग-गोचोरग-अस्सचोरग-दासीचोरा य एकचोरा 卐 ओकड्ढग-संपदायग-उच्छिपग-सत्थघायग-बिलचोरीकारगा य णिग्गाहविप्पलुंपगा卐 ॐ बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी एए अण्णे य एवमाई परस्स दव्वाहि जे अविरया।
___ (प्रश्न. 1/3/सू.62) + उस (पूर्वोक्त) चोरी को वे चोर-लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने ॥ 卐 वाले हैं, हरण करने में कुशल है, अनेकों बार चोरी कर चुके है और अवसर को जानने वाले है की हैं, साहसी हैं-परिणाम की परवाह न करके भी चोरी करने में प्रवृत्त हो जाते हैं, जो तुच्छ ॐ हृदय वाले, अत्यन्त महती इच्छा-लालसा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो लिए कुछ ऋण को
नहीं चुकाने वाले हैं, जो की हुई सन्धि, प्रतिज्ञा या वायदे को भंग करने वाले हैं, जो वचनों ज के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं या दूसरों को लज्जित करने वाले हैं, 卐 卐 जो दूसरों के धनादि में गृद्ध-आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार करने वाले हैं- सामने है ॐ आए हुए को मारने वाले हैं, जो लिए हुए ऋण को नहीं चुकाने वाले हैं, जो की हुई सन्धि,
प्रतिज्ञा या वादे को भंग करने वाले हैं, जो राजकोष आदि को लूट कर या अन्य प्रकार के CE राजा-राज्यशासन का अनिष्ट करने वाले हैं, देशनिर्वासन दिए जाने के कारण जो जनता द्वारा 卐 बहिष्कृत हैं, जो घातक हैं या उपद्रव (दंगा आदि) करने वाले हैं, ग्रामघातक, नगरघातक, म मार्ग में पथिकों को लूटने वाले या मार डालने वाले हैं, आग लगाने वाले और तीर्थ में भेद है
करने वाले हैं, जो (जादूगरों की तरह) हाथ की चालाकी वाले हैं-जेब या गांठ काट लेने में कुशल हैं, जो जुआरी हैं, खण्डरक्ष-चुंगी लेने वाले या कोतवाल हैं, स्त्रीचोर हैं-जो स्त्री । को या स्त्री की वस्तु को चुराते हैं अथवा स्त्री का वेष धारण करके चोरी करते हैं, जो पुरुष
FREEEEEEEEEEEEEE N जैन संस्कृति खण्ड/204