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TEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEP 0 अहिंसाः सभी व्रतों की आधार-भूमि
(356) ___ तत्र अहिंसाव्रतमादौ क्रियते प्रधानत्वात् । सत्यादीनि हि तत्परिपालनार्थानि, ॐ सस्यस्य वृत्तिपरिक्षेपवत्।
(सर्वा. 7/1/664) पांच व्रतों में अहिंसा व्रत को प्रारम्भ में रखा गया है क्योंकि वह सब में मुख्य है। धान्य के खेत के लिए जैसे उसके चारों ओर कांटों का घेरा होता है, उसी प्रकार सत्यादिक 卐 सभी व्रत उसकी रक्षा के लिए हैं।
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(357) यतीनां श्रावकाणां च व्रतानि सकलान्यपि। एकाहिंसाप्रसिद्ध्यर्थं कथितानि जिनेश्वरैः॥
(पद्म. पं. 6/40) जिनेश्वरों ने व्यक्तियों या श्रावकों के जितने भी व्रत कहे गए हैं, वे सभी एक 'अहिंसा' की सिद्धि हेतु ही उपदिष्ट हैं।
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{358) एतत्समयसर्वस्वमेतत्सिद्धान्तजीवितम् । यज्जन्तुजातरक्षार्थ भावशुद्या दृढं व्रतम्॥
(ज्ञा. 8/29/501) यह अहिंसा' रूप दृढ़ व्रत ही है जिसमें समस्त जंतुओं की रक्षा का निर्मल/विशुद्ध भाव समाहित है, यह सभी मतों का सारभूत है और सभी सिद्धांतों का प्राण (मूल) है।
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ज्योतिश्चक्रस्य चन्द्रो हरिरमृतभुजां चण्डरोचिर्ग्रहाणाम्, कल्पाङ्गं पादपानां सलिलनिधिरपां स्वर्णशैलो गिरीणाम्। देवः श्रीवीतरागस्त्रिदशमुनिगणस्यात्र नाथो यथाऽयम्, तद्वच्छीलव्रतानां शमयमतपसां विद्ध्यहिंसां प्रधानाम्॥
(ज्ञा. 8/57/530) हे भव्य जीव ! जिस प्रकार ज्योतिश्चक्रों में प्रधान स्वामी चंद्रमा है तथा देवों में म मुनियों के नाथ (स्वामी) श्रीवीतराग देव प्रधान हैं, उसी प्रकार शील और व्रतों में तथा ॥ ॐ शमभाव, यम (महाव्रत) व तपों में अहिंसा को प्रधान जानो।
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अहिंसा-विश्वकोश।1651