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पंचिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, तं जहा卐 सोतिंदिय-संजमे, (चक्खिदियसंजमे, घाणिंदियसंजमे, जिभिदियसंजमे), फासिंदियसंजमे।
__ (ठा. 5/2/142) पंचेन्द्रिय जीवों का आरंभ-सभारंभ नहीं करने वाले को पांच प्रकार का संयम होता है। जैसे
1. श्रोत्रेन्द्रिय-संयम, 2. चक्षुरिन्द्रिय-संयम, 3. घ्राणेन्द्रिय-संयम, 4. रसनेन्द्रियसंयम, और 5. स्पर्शनेन्द्रिय-संयम (क्योंकि वह पांचों इन्द्रियों का व्याघात नहीं करता)।
{353) सव्वपाणभूयजीवसत्ताणं असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कजति, तं जहाएगिदियसंजमे, (बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिदियसंजमे), पंचिंदियसंजमे।
. . . (ठा. 5/2/144) सर्व प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का घात नहीं करने वाले को पांच प्रकार का संयम होता है। जैसे-1. एकेन्द्रिय-संयम, 2. द्वीन्द्रिय-संयम, 3. त्रीन्द्रिय-संयम, 4. चतुरिन्द्रिय-संयम, और 5. पंचेन्द्रिय-संयम।
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{354) अहिंसा निठणा दिट्ठा, सव्वभूएस संजमो॥
(प्रश्र. 6/271) सभी जीवों के प्रति 'संयम' भाव को ही 'अहिंसा' के रूप में (तीर्थंकर महावीर ॐ द्वारा) जाना-देखा गया है।
Oअहिंसाः परम ब्रहा
(355] अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्।
(बृ.स्व.स्तो. 119) इस लोक में प्राणियों के लिए 'अहिंसा' ही 'पर ब्रह्म' के रूप में प्रसिद्ध/मान्य हैं। F FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/164