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________________ NRUEUEUEUELEUEUEUEUEUEUEUEUELUGUFFFFFrhrrrrrrrrrrn. जगाचा0555 1 (352) पंचिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, तं जहा卐 सोतिंदिय-संजमे, (चक्खिदियसंजमे, घाणिंदियसंजमे, जिभिदियसंजमे), फासिंदियसंजमे। __ (ठा. 5/2/142) पंचेन्द्रिय जीवों का आरंभ-सभारंभ नहीं करने वाले को पांच प्रकार का संयम होता है। जैसे 1. श्रोत्रेन्द्रिय-संयम, 2. चक्षुरिन्द्रिय-संयम, 3. घ्राणेन्द्रिय-संयम, 4. रसनेन्द्रियसंयम, और 5. स्पर्शनेन्द्रिय-संयम (क्योंकि वह पांचों इन्द्रियों का व्याघात नहीं करता)। {353) सव्वपाणभूयजीवसत्ताणं असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कजति, तं जहाएगिदियसंजमे, (बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिदियसंजमे), पंचिंदियसंजमे। . . . (ठा. 5/2/144) सर्व प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का घात नहीं करने वाले को पांच प्रकार का संयम होता है। जैसे-1. एकेन्द्रिय-संयम, 2. द्वीन्द्रिय-संयम, 3. त्रीन्द्रिय-संयम, 4. चतुरिन्द्रिय-संयम, और 5. पंचेन्द्रिय-संयम। 如明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 {354) अहिंसा निठणा दिट्ठा, सव्वभूएस संजमो॥ (प्रश्र. 6/271) सभी जीवों के प्रति 'संयम' भाव को ही 'अहिंसा' के रूप में (तीर्थंकर महावीर ॐ द्वारा) जाना-देखा गया है। Oअहिंसाः परम ब्रहा (355] अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्। (बृ.स्व.स्तो. 119) इस लोक में प्राणियों के लिए 'अहिंसा' ही 'पर ब्रह्म' के रूप में प्रसिद्ध/मान्य हैं। F FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/164
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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