________________
LELELELELELELELELELELEUCLELELELELELELELELELELELELELELELELELELE
PO अहिंसात्गक हितकारी वचन का उपदेश
{424)
भाषेत वचनं नित्यमभिजातं हितं मितम्॥
(उपासका. 28/376) असभ्य वचन भी नहीं बोलना चाहिए। किन्तु सदा हित-मित और सभ्य वचन ही बोलना चाहिए।
代弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱~弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱
{425) वइज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ।
(दशवै. 7/56) बुद्धिमान् ऐसी भाषा बोले- जो हितकारी हो एवं अनुलोम- सभी को प्रिय हो।
Oहिंसात्गक वातावरण का ध्यानः उपदेशक के लिए अपेक्षित
明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明$$$$$明明出
1426) केसिंचि तक्काए अबुज्झ भावं खुई पि गच्छेज्ज असद्दहाणे। आउस्स कालातियारं वघातं लद्धाणुमाणे य परेसु अटे॥
(सू.कृ. 1/13/20) 卐 ___ अपनी तर्क-बुद्धि के द्वारा दूसरों के भावों को न जान कर (तत्त्व- चर्चा करने पर) अश्रद्धालु मनुष्य क्रोध को प्राप्त हो सकता है और वक्ता को मार सकता है या कष्ट दे सकता है, इसलिए (धर्मकथा करने वाला मुनि) अनुमान के द्वारा दूसरों के भावों को जान कर ही म धर्म कहे (अर्थात् वह उपदेश देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की कहीं उसके 卐 भाषण से लोग क्रोधित न हो जाएं और हिंसक वातावरण पैदा हो)।
(427) अणुगच्छमाणे वितहं ऽभिजाणे तहा तहा साहु अकक्कसेणं। ण कत्थई भास विहिंसएजा णिरुद्धगं वावि ण दीहएज्जा॥
(सू.कृ. 1/14/23) (वक्ता के वचन को) कोई श्रोता यथार्थ रूप में जान लेता है और कोई उसे यथार्थ : ॐ रूप में नहीं जान पाता। (उपदेशक को चाहिए कि वह) उस (मंदमति श्रोता) को वैसे-वैसे
[जैन संस्कृति खण्ड/186