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म इमाई छ अवयणाई वदित्तए-अलियवयणे, हीलियवयणे, खिंसितवयणे, 卐 फरुसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसवितं वा पुणो उदीरित्तए।
___(ठा. 6/3/100) . छह तरह के वचन (साधु आदि को) नहीं बोलने चाहिएं- असत्य वचन, म तिरस्कारयुक्त वचन, झिड़कते हुए वचन, कठोर वचन, साधारण मनुष्यों की तरह अविचारपूर्ण ॥ 5 वचन और शान्त हुए कलह को फिर से भड़काने वाले वचन।
{421) मर्मच्छेदि मनःशल्यं च्युतस्थैर्य विरोधकम्। निर्दयं च वचस्त्याज्यं प्राणै:कण्ठगतैरपि।
(ज्ञा. 9/13/543) ___मर्म को छेदने वाले, मन में शल्य (कांटा चुभने की पीड़ा को)उपजाने वाले, # स्थिरता-रहित (चंचल रूप), विरोध उपजाने वाले तथा दया-रहित वचन को कण्ठगत 卐 प्राण होने पर भी, नहीं बोलना चाहिए।
(422)
अत्युक्तिमन्यदोषोक्तिमसभ्योक्तिं च वर्जयेत्।
_ (उपासका. 28/376) किसी बात को बढ़ा कर नहीं कहना चाहिए, न दूसरे के दोषों को ही कहना चाहिए।
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{423} इमं [सच्चवयणं] च अलिय-पिसुण-फरुस-कडु य-चवलवयणम परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभदं ॐ सुद्धं णेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विउसमणं।
___(प्रश्र. 2/2/सू.121) अलीक-असत्य, पिशुन-चुगली, परुष-कठोर, कटु-कटुक और चपल-चंचलतायुक्त (जो असत्यवत् दोषयुक्त हैं, ऐसे) वचनों से बचाव के लिए तीर्थंकर भगवान् ने यह ज प्रवचन समीचीन रूप से प्रतिपादित किया है। यह (सत्य समर्थक) भगवत्प्रवचन आत्मा के 卐 लिए हितकर है, जन्मान्तर में शुभ भावना से युक्त है, भविष्य में श्रेयस्कर है, शुद्ध-निर्दोष है, न्यायसंगत है, मुक्ति का सीधा मार्ग है, सर्वोत्कृष्ट है तथा समस्त दुःखों और पापों को पूरी तरह उपशान्त-नष्ट करने वाला है। FFFFFFFFFFFER
अहिंसा-विश्वकोश।।851
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