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मा कडुयं भणह जणे महुरं, पडिभणह कडुयभणिया वि। जइ गेण्हिऊण इच्छह लोए सुहयत्तण-पडायं॥
(कुवलयमाला, अनुच्छेद 85) ___यदि संसार में अच्छेपन की ध्वजा लेकर चलना चाहते हो तो लोगों को कडुआ मत卐 बोलो और उनके द्वारा कडुआ बोले जाने पर भी मधुर वचन बोलो।
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हासेण वि मा भण्णऊ, णयरं जं मम्मवेहणं वयणं ।
(कुवलयमाला, अनुच्छेद 85) मज़ाक के द्वारा भी मर्मवेधक और व्यर्थ के वचन मत बोलो।
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(415) साइयं न मुसं बूया, एस धम्मे वुसीम ओ॥
(सू. कृ. 1/8/19) विश्वासघात न करना, विश्वासघाती असत्य न बोलना- यही धर्म है।
{416) कक्कस्सवयणं णिठ्ठरवयणं पेसुण्णहासवयणं च। जं किंचि विप्पलावं गरहिदवयणं समासेण ॥
(भग. आ. 824) कर्कश वचन अर्थात् घमण्डयुक्त वचन, निष्ठर वचन, दूसरे के दोषों का सूचन म करने वाले वचन, हास्य वचन और जो कुछ भी बकवाद करना, ये सब संक्षेप में गर्हित ॥
वचन हैं।
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अहिंसा-विश्वकोश||83]]