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कामं परपरितावो, असायहेतू जिणेहिं पण्णत्तो। आत-परहितकरो पुण, इच्छिज्जइ दुस्सले स खलु ॥
__ (बृह. भा. 5108) यह ठीक है कि जिनेश्वर देव ने पर परिताप को दुःख का हेतु बताया है, किंतु शिक्षा की दृष्टि से दुष्ट शिष्य को दिया जाने वाला परिताप इस कोटि में नहीं है, चूंकि वह तो स्व卐 पर का हितकारी कार्य है।
O हिंसाप्रेरक व गिथ्या आचारः असावधान/अविवेकी जनों का वाणी-व्यवहार
{432) पुट्ठा वा अपुट्ठा वा परतत्तियवावडा य असमिक्खियभासिणो उवदिसंति, सहसा उट्ठा गोणा गवया दमंतु, परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलग-कुक्कुडा य किजंतु, किणावेह य विक्के ह पहय य सयणस्स देह पियह... गहणाई वणाई
खेत्तखिलभूमिवल्लराइं उत्तण-घणसंकडाई डझंतु सूडिजंतु य रुक्खा, भिज्जंतुक 卐 जंतभंडाइयस्स उवहिस्स कारणाए बहुविहस्स य अठ्ठाए उच्छू दुजंतु, पीलिजंतु य तिला, पयावेह य इट्ठकाउ मम घरट्ठयाए, खेत्ताई कसह कसावेह य, लहुं गाम
आगर-णगर-खेड-कब्बडे णिवेसेह, अडवीदेसेसु विउलसीमे पुष्पाणि य फलाणि जय कंदमूलाई काल- पत्ताई गिण्हेह, करेह संचयं परिजणट्ठयाए साली वीही जवा य'
लुच्चंतु मलिज्जंतु उप्पणिज्जंतु य लहुं य पविसंतु य कोट्ठागारं । अप्पमहउक्कोसगा यई हम्मंतु पोयसत्था, सेण्णा णिज्जाउ, जाउ डमरं, घोरा वटुंतु य संगामा पवहंतु य सगडवाहणाई।
(प्रश्र. 1/2/सू.56-57) अन्य प्राणियों को सन्ताप-पीडा प्रदान करने में प्रवृत्त, अविचारपूर्वक भाषण करने 卐 वाले लोग किसी के पूछने पर और (कभी-कभी) विना पूछे ही सहसा (अपनी पटुता प्रकट के
करने के लिए) दूसरों को इस प्रकार का उपदेश देते हैं कि -ऊंटों को, बैलों को और गवयों-रोझों को दमो- इनका दमन करो। वयःप्राप्त-परिणत आयु वाले इन अश्वों को, म हाथियों को, भेड़-बकरियों को या मुर्गों को खरीदो, खरीदवाओ, इन्हें बेच दो, पकाने योग्य न वस्तुओं को पकाओ, स्वजन को दे दो, पेय-मदिरा आदि पीने योग्य पदार्थों का पान करो। ये सघन वन, खेत, विना जोती हुई भूमि, वल्लर- विशिष्ट प्रकार के खेत, जो उगे हुए, घासFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEEEEEEEEEE जैन संस्कृति खण्ड/188
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