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जह परमण्णस्स विसं विणासयं जह व जोव्वणस्स जरा। तह जाण अहिंसादी गुणाण य विणासयमसच्चं ॥
(भग. आ. 839) जैसे विष उत्तमोत्तम भोजन का विनाशक है और बुढ़ापा यौवन का विनाशक है, वैसे ही असत्य वचन अहिंसा आदि गुणों का विनाशक है।
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हिंसात्मक प्राणी-पीड़ाकारी वचन: असत्य
(3971 सदर्थमसदर्थं च प्राणिपीडाकरं वचः। असत्यमनृतं प्रोक्तमृतं प्राणिहितं वचः॥
(ह. पु. 58/130) विद्यमान अथवा अविद्यमान वस्तु को निरूपण करने वाला जो वचन प्राणियों को पीड़ित करने वाला होता है तो वह 'असत्य' अथवा अनृत वचन कहलाता है। इसके 卐 विपरीत, जो वचन प्राणियों का हित करने वाला है, वह 'ऋत' (अथवा सत्यवचन) 卐 कहलाता है।
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{398) छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि। तत्सावा यस्मात्प्राणिवधाद्याः प्रवर्तन्ते॥
____ (पुरु. 4/61/97) किसी जीव के छेदन, भेदन, मारण, घसीटने आदि की प्रेरणा देने वाले तथा : (हिंसक) व्यापार एवं चोरी में प्रवृत्ति कराने वाले जो वचन हैं, वह सब पापयुक्त वचन हैं, ॐ क्योंकि वे प्राणी-हिंसा आदि पापों में प्रवृत्त कराते हैं।
1399)
कोवाकुलचित्तो जं संतमवि भासति, तं मोसमेव भवति।
(दशवै. चू.7) ___ क्रोध (हिंसात्मक मनोवृत्ति) से क्षुब्ध हुए व्यक्ति का सत्य भाषण भी असत्य ही है। ERESEREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEERENT
अहिंसा-विश्वकोश।1771
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