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की चोरिय
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(402)
जंताई विसाई मूलकम्मं आहेवण- आविंधण - आभिओग- मंतोसहिप्पओगे
- परदार- गमण-बहु पावकम्मकरणं उक्खंधे गामघाइयाओ वणदहण
तलागभेयणाणि बुद्धिविसयविणासणाणि वसीकरणमाइयाइं भय-मरण
किलेसदोसजणणाणि भावबहुसंकिलिट्ठमलिणाणि भूयघाओवघाइयाई सच्चाई विक ताइं हिंसगाईं वयणाई उदाहरंति ।
(प्रश्न. 1/2 / सू. 55 )
मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के लिए (लिखित) यन्त्रों या पशु-पक्षियों को पकड़ने वाले यन्त्रों, संखिया आदि विषों, गर्भपात आदि के लिए जड़ी-बूटियों के प्रयोग,
द्वारा नगर में क्षोभ या विद्वेष उत्पन्न कर देने अथवा मन्त्रबल से धनादि खींचने, द्रव्य और
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भाव से वशीकरण- मन्त्रों एवं औषधियों के प्रयोग करने, चोरी, परस्त्रीगमन करने आदि के
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मन्त्र आदि
बहुत-से पापकर्मों के उपदेश देने, तथा छल से शत्रुसेना की शक्ति को नष्ट करने अथवा उसे
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(403)
इहलोइय परलोइय दोसा जे होंति अलियवयणस्स । कक्कसवदणादीण वि दोसा ते चेव णादव्वा ॥
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(भग. आ. 845)
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इस लोक और परलोक में असत्यवादी जिन दोषों का पात्र होता है, कर्कश आदि
वचन बोलने वाला भी उन्हीं दोषों का पात्र होता है (अर्थात् कटु वचन बोलना असत्य भाषण ! जैसा ही अनिष्टकारी व निन्दनीय है) ।
कुचल देने, जंगल में आग लगा देने, तालाब आदि जलाशयों को सुखा देने, ग्रामघात - गांव
को नष्ट कर देने, बुद्धि के विषयों-विषयभूत पदार्थों को नष्ट करने के कारणभूत, वशीकरण क 馬 आदि के द्वारा भय, मरण, क्लेश और दुःख उत्पन्न करने वाले, अतीव संक्लेश होने के कारण
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मलिन, जीवों का घात और उपघात करने वाले वचन तथ्य ( यथार्थ) होने पर भी प्राणियों
का घात करने वाले (होने से 'असत्य वचन') हैं, जिन्हें मृषावादी बोलते हैं।
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अहिंसा-विश्वकोश | 179/
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