________________
卐
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$航
卐卐
{370}
परमाणोः परं नाल्पं न महद् गगनात्परम् । यथा किञ्चित्तथा धर्मो नाहिंसालक्षणात्परः ॥
(ज्ञा. 8 /40/512)
卐
इस लोक में जैसे परमाणु से तो कोई छोटा वा अल्प नहीं है और आकाश से कोई बड़ा
नहीं है, इसी प्रकार अहिंसारूप धर्म से अधिक बड़ा तथा कोई अधिक सूक्ष्म धर्म नहीं है।
(371)
मातेव
सर्वभूतानामहिंसा हितकारिणी । संसारमरावमृतसारणिः ॥
अहिंसैव
हि
अहिंसा दुःख - दावाग्नि- प्रावृषेण्यघनावली । भवभ्रमिरुगार्तानामहिंसा
परमौषधी ॥
(है. योग. 2/50-51) 筑
अहिंसा माता की तरह समस्त प्राणियों का हित करने वाली है। अहिंसा ही इस संसार रूपी मरुभूमि (रेगिस्तान) में अमृत बहाने वाली सरिता है । अहिंसा दु:खरूपी 卐
# दावाग्नि को शांत करने के लिए वर्षाऋतु की मेघ-घटा है, तथा भवभ्रमणरूपी रोग से पीड़ित
馬
जीवों के लिए अहिंसा एक परम औषधि है।
卐
(372)
दीर्घमायुः परं रूपमारोग्यं श्लाघनीयता । अहिंसायाः फलं सर्वं किमन्यत् कामदैव सा ॥
दीर्घ आयुष्य, उत्तम रूप, आरोग्य, प्रशंसनीयता आदि सब अहिंसा के ही सुफल हैं। अधिक क्या कहें? अहिंसा कामधेनु की तरह समस्त मनोवाञ्छित फल देती है।
(है. योग. 2/52)
{373}
करुणार्द्रं च विज्ञानवासितं यस्य मानसम् । इन्द्रियार्थेषु निःसङ्गं तस्य सिद्धं समीहितम् ॥
(ज्ञा. 8/42/514 )
जिस पुरुष का मन करुणा से आर्द्र ( गीला ) हो तथा विशिष्ट ज्ञानसहित हो और
इन्द्रियों के विषयों से दूर हो, वही मनोवांछित कार्य को सिद्ध कर पाता है ।
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
$$$$$$$$$$
编编 अहिंसा - विश्वकोश | 169]
卐
$$$$$$$$$$$$$
卐