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की महापरिग्गहयाए, पंचिंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं ।
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(286)
हिं ठाणेहिं जीवा रइयाउयत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा - महारंभताए,
चार कारणों से जीव नारकायुष्क- योग्य कर्म उपार्जन करते हैं। जैसे
1. महा आरम्भ (हिंसा-संकल्प) से, 2. महा परिग्रह से, 3. पंचेन्द्रिय जीवों का वध करने से, 4. कुणप आहार से (मांसभक्षण करने से ) ।
O जन-संहारकारी युद्ध की निन्दा
(287)
अकारणरणेनालं जनसंहारकारिणा । महानेवमधर्मश्च गरीयांश्च यशोवधः ॥
● संतान / भ्रूण हत्या वर्जित
सकती है?
मनुष्यों का संहार करने वाले इस कारणहीन युद्ध से कोई लाभ नहीं है क्योंकि इसके करने से बड़ा भारी अधर्म होता है और यश की भी हानि होती है ।
(ठा. 4/4/628)
(288)
संतानघातिनः पुंसः का गतिर्नरकाद्विना ।
(आ. पु. 36/41 )
ברב-כוכב ברברכר
संतान का घात करने वाले पुरुष की नरक के सिवाय दूसरी कौन - सी गति हो
(उ. पु. 65/78)
अहिंसा - विश्वकोश | 129]
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