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{279) रौरवादिषु घोरेषु विशन्ति पिशिताशनाः। तेष्वेव हि कदर्थ्यन्ते जन्तुघातकृतोद्यमाः॥
(ज्ञा. 8/16/488) जो मांस के खाने वाले हैं, वे सातवें नरक के रौरवादि बिलों में प्रवेश करते हैं और ॐ वहीं पर जीवों को घात करने वाले ये शिकारी आदिक भी पीड़ित होते हैं।
{280) हिंसास्तेयानृताब्रह्मबह्वारम्भादिपातकैः । विशन्ति नरकं घोरं प्राणिनोऽत्यन्तनिर्दयाः॥
____ (ज्ञा. 33/14/1702) अतिशय निर्दय प्राणी हिंसा, चोरी, असत्य, अब्रह्म (मैथुन) और बहुत आरम्भादि ॐ पापों के कारण भयानक नरक में प्रवेश करते हैं।
(281)
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तिव्वं तसे पाणिणो थावरे य, जे हिंसई आयसुहं पडुच्चा। जे लूसए होइ अदत्तहारी, ण सिक्खई सेयवियस्स किंचि॥
(सू.कृ. 1/5/1/4) जो अपने सुख के लिए क्रूर अध्यवसाय से त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करते 卐 हैं, उनका अंगच्छेद करते हैं, चोरी करते हैं और सेवनीय (आचरणीय) का अभ्यास नहीं है 卐करते (वे नरक में जाते हैं।)
(282)
जे इह आरंभणिस्सिया आयदंड एगंतलूसगा। गंता ते पावलोगयं चिररायं आसुरियं दिसं॥
___ (सू.कृ. 1/2/3/63) जो हिंसा-परायण, आत्मघाती और निर्जन प्रदेश में लूटने वाले हैं, वे नरक में जायेंगे और उस आसुरी दिशा में चिरकाल तक रहेंगे।
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अहिंसा-विश्वकोश||27]