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[प्र.] भगवन्! जीवों के सातावेदनीय कर्म कैसे बंधते हैं?
[उ.] गौतम! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से, जीवों के म प्रति अनुकम्पा करने से और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से, तथा बहुत-से प्राण, भूत, जीव है 卐 और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक (दैन्य) उत्पन्न न करने से, (शरीर को सुखा देने के
वाली) चिन्ता (विषाद या खेद) उत्पन्न न करने से, विलाप एवं रुदन करा कर आंसू न
बहवाने से, उनको न पीटने से, उन्हें परिताप न देने से (जीवों के सातावेदनीय कर्म बंधते 卐 हैं।) हे गौतम! इस प्रकार से जीवों के सातावेदनीय कर्म बंधते हैं।
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{342) तत्थ णं जे ते समण-माहणा एवं आइक्खंति जाव परूवेंति-सव्वे पाणा सव्वे 卐 भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेत्तव्वा ण उद्दवेयव्वा,
ते णो आगंतुं छेयाए, ते णो आगंतुं भेयाए, ते णो आगंतुं जाइ-जरा-मरण
जोणिजम्मण-संसार-पुणब्भव-गब्भवास-भवपवंचकलंकलीभागिणो भविस्संति, 卐 ते णो बहूणं दंडणाणं जाव णो बहूणं दुक्खदोमणसाणं आभागिणो भविस्संति, 卐
अणातियं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो णो अणुपरियट्टिस्संति ते सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति।
(सू.कृ. 2/2/720) धर्म-विचार के प्रसंग में जो सुविहित श्रमण एवं माहन यह कहते हैं कि-समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को नहीं मारना चाहिए, उन्हें अपनी आज्ञा में नहीं चलाना॥ एवं उन्हें बलात् दास-दासी के रूप में पकड़ कर गुलाम नहीं बनाना चाहिए। उन्हें डरानाधमकाना या पीड़ित नहीं करना चाहिए, वे महात्मा भविष्य में छेदन-भेदन आदि कष्टों को
प्राप्त नहीं करेंगे, वे जन्म, जरा, मरण, अनेक योनियों में जन्म-धारण, संसार में पुनः पुनः ॐ जन्म, गर्भवास तथा संसार के अनेकविध प्रपंच के कारण नाना दुःखों के भाजन नहीं होंगे,
तथा वे आदि-अंतरहित, दीर्घकालिक मध्यरूप चतुर्गतिक संसाररूपी घोर वन में बार-बार भ्रमण नहीं करेंगे। (अंत में) वे सिद्धि (मुक्ति) को प्राप्त करेंगे, केवलज्ञान, केवलदर्शन ॐ प्राप्त कर बुद्ध और मुक्त होंगे तथा समस्त दुःखों का सदा के लिए अंत करेंगे।
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अहिंसा-विश्वकोश।।57]