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{303} एगिदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तंजहाॐ पुढविकाइय-असंजमे,(आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे), वणस्सतिकाइयअसंजमे।
(ठा. 5/2/141) एकेन्द्रिय जीवों का आरम्भ करने वाले को पांच प्रकार असंयम होता है। जैसे
1. पृथिवीकायिक-असंयम, 2. अप्कायिक-असंयम, 3. तेजस्कायिक-असंयम, 卐 4.वायुकायिक-असंयम, और 5. वनस्पतिकायिक-असंयम।
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बेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स चउविधे असंजमे कज्जति, तं जहाजिब्भामयातो सोक्खातो ववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति, # फासामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, (फासामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति)।
(ठा. 4/4/617) द्वीन्द्रिय जीवों का घात करने वाले पुरुष के चार प्रकार असंयम होता है। जैसे1. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय सुख का घात करता है, यह पहला असंयम है। 卐 2. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय दुःख का संयोग करता है, यह दूसरा असंयम है। 3. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय सुख का घात करता है, यह तीसरा असंयम है। 4. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय दुःख का संयोग करता है, यह चौथा असंयम है।
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{305) पंचिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविधे असंजमे कजति, तंजहासोतिंदिय-असंजमे,(चक्खिदियअसंजमे, घाणिंदियअसंजमे, जिभिदियअसंजमे), फासिंदियअसंजमे।
(ठा. 5/2/143) पंचेन्द्रिय जीवों का घात करने वाले को पांच प्रकार का असंयम होता है। जैसे
1. श्रोत्रेन्द्रिय-असंयम, 2. चक्षुरिन्द्रिय-असंयम 3. घ्राणेन्द्रिय-असंयम 4. रसनेन्द्रिय 卐 असंयम, और 5. स्पर्शनेन्द्रिय-असंयम।
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[जैन संस्कृति खण्ड/142